'गैरों को कब फुर्सत है दुख देने की...' पढ़ें जावेद अख्तर के सदाबहार शेर.
22 JUNE 2025
दुनिया मिलती
अक्ल ये कहती है दुनिया मिलती है बाजार में, दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए.
जाते जाते
उस की आंखों में भी काजल फैल रहा है, मैं भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूं.
गैरों को
गैरों को कब फुर्सत है दुख देने की, जब होता है कोई हमदम होता है.
पलक पे है
अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफी, हुनर भी चाहिए अल्फाज में पिरोने का.
ढूंडते रहते हैं
बहाना ढूंडते रहते हैं कोई रोने का, हमें ये शौक है क्या आस्तीं भिगोने का.
यही मुनासिब है
मैं भूल जाऊं तुम्हें अब यही मुनासिब है, मगर भुलाना भी चाहूं तो किस तरह भूलूं.