05 Nov 2025
'मजहबी बहस मैं ने की ही नहीं...' पढ़ें अकबर इलाहाबादी के सदाबहार शेर.
नाज़ुक-मिजाज
इश्क़ नाज़ुक-मिजाज है बेहद, अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता.
तलबगार नहीं
दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं, बाजार से गुजरा हूं खरीदार नहीं हूं.
मजहबी बहस
मजहबी बहस मैं ने की ही नहीं, फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं.
नींद भी नहीं
आई होगी किसी को हिज्र में मौत, मुझ को तो नींद भी नहीं आती.
तलवार निकालो
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो.
सुल्तां की फौज
अकबर दबे नहीं किसी सुल्तां की फौज से, लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से.