28 Nov 2026
'जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर...' पढ़ें आदिल मंसूरी के दिल जीत लेने वाले शेर.
उजाले
वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया, ये चांद किस को ढूंडने निकला है शाम से.
मेहनत
कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया, उदासी की मेहनत ठिकाने लगी.
मेहनत
जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर, वो तस्वीर बातें बनाने लगी.
वीरान रास्तों
क्यूं चलते चलते रुक गए वीरान रास्तों, तन्हा हूं आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो.
इख़्तियार
मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूं, ये जब्र है कि मैं खुद अपने इख़्तियार में हूं.
तन्हाई
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में, तिरी याद आँखें दुखाने लगी.