'अगर नवाज रहा है तो यूं नवाज मुझे...' पढ़ें आलोक श्रीवास्तव के सदाबहार शेर.

ये सोचना गलत है कि तुम पर नजर नहीं, मसरूफ हम बहुत हैं मगर बे-खबर नहीं.

मसरूफ हम

आ ही गए हैं ख्वाब तो फिर जाएंगे कहां, आंखों से आगे उन की कोई रहगुजर नहीं. 

ख्वाब

यही तो एक तमन्ना है इस मुसाफिर की, जो तुम नहीं तो सफर में तुम्हारा प्यार चले.

इस मुसाफिर

बात करो तो लफ्जों से भी खुश्बू आती है, लगता है उस लड़की को भी उर्दू आती है.

लफ्जों से भी खुश्बू

अगर नवाज रहा है तो यूं नवाज मुझे, के मेरे बाद मेरा जिक्र बार-बार चले.

यूं नवाज

अम्मा जी की सारी सजधज, सब जेवर थे बाबूजी. 

सारी सजधज