1 MAY 2025

'घर के बाहर ढूंढता रहता हूं दुनिया...' पढ़ें राहत इंदौरी साहब के लाजवाब शेर.

 मुसाफिर

हम से पहले भी मुसाफिर कई गुजरे होंगे,  कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते.

दरिया

बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं.

होंटों पे चिंगारी

आंख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो, जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो.

नुमाइश में खलल 

रोज तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है, चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है.

 आंखों का भरम 

ये जरूरी है कि आंखों का भरम क़ाएम रहे, नींद रक्खो या न रक्खो ख्वाब मेयारी रखो.

 ढूंढता रहता हूं 

घर के बाहर ढूंढता रहता हूं दुनिया, घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है.