'सिर्फ हंगामा खड़ा करना मिरा मक्सद नहीं', पढ़ें दुष्यंत कुमार के बेहतरीन शेर.
कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारों.
आकाश में सूराख
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए.
आग जलनी चाहिए
कहां तो तय था चरागां हर एक घर के लिए,
कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए.
चराग मयस्सर
तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं.
पांव के नीचे
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मिरा मक्सद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए.
सूरत बदलनी चाहिए
नजर-नवाज नजारा बदल न जाए कहीं,
जरा सी बात है मुंह से निकल न जाए कहीं.
मुंह से निकल