'तेरे जल्वों ने मुझे घेर लिया है ऐ दोस्त...' पढ़ें सीमाब अकबराबादी के सदाबहार शेर.

उम्र-ए-दराज मांग के लाई थी चार दिन, दो आरजू में कट गए दो इंतिजार में.

उम्र-ए-दराज

दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में, इक आईना था टूट गया देख-भाल में.

बिसात क्या थी

तेरे जल्वों ने मुझे घेर लिया है ऐ दोस्त, अब तो तन्हाई के लम्हे भी हसीं लगते हैं.

तन्हाई के लम्हे

है हुसूल-ए-आरजू का राज तर्क-ए-आरजू, मैं ने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे.

दुनिया छोड़

 मरकज पे अपने धूप सिमटती है जिस तरह, यूं रफ्ता रफ्ता तेरे करीब आ रहा हूँ मैं.

धूप सिमटती है

मिरी दीवानगी पर होश वाले बहस फरमाएं, मगर पहले उन्हें दीवाना बनने की जरूरत है.

दीवाना बनने