09 Dec 2025
'एक बोसे के भी नसीब न हों...' पढ़ें फ़रहत एहसास के सदाबहार शेर.
इक रात
1. इक रात वो गया था जहां बात रोक के, अब तक रुका हुआ हूं वहीं रात रोक के.
इंतिजार में
वो चांद कह के गया था कि आज निकलेगा, तो इंतिजार में बैठा हुआ हूं शाम से मैं.
तन्हा नहीं
किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती, है यही एक खराबी मिरी तन्हाई की.
नसीब न हों
एक बोसे के भी नसीब न हों, होंठ इतने भी अब गरीब न हों.
रोने की सदा
हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है, शहर में जो भी हुआ है वो खता मेरी है.