04 Nov 2025

गुलजार के वे शेर जो दिल को छू लें.

 तसल्ली हुई

आइना देख कर तसल्ली हुई, हम को इस घर में जानता है कोई.

वक़्त रहता

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर, आदत इस की भी आदमी सी है.

ज़िंदगी यूं 

ज़िंदगी यूं हुई बसर तन्हा, क़ाफ़िला साथ और सफर तन्हा.

आंख में नमी

शाम से आंख में नमी सी है, आज फिर आप की कमी सी है.

आदतन तुम 

आदतन तुम ने कर दिए वादे, आदतन हम ने ए'तिबार किया.

आदतन तुम 

जिस की आंखों में कटी थीं सदियां, उस ने सदियों की जुदाई दी है.