11 Dec 2025
'फिर मिरी आंख हो गई नमनाक...' पढ़ें असरार-उल-हक़ मजाज़ के दिल जीत लेने वाले शेर.
आंख से आंख
1. आंख से आंख जब नहीं मिलती, दिल से दिल हम-कलाम होता है.
मुसलमां चला गया
हिन्दू चला गया न मुसलमां चला गया, इंसां की जुस्तुजू में इक इंसाँ चला गया.
मिरी आंख
फिर मिरी आंख हो गई नमनाक, फिर किसी ने मिज़ाज पूछा है.
बर्बादियों
मिरी बर्बादियों का हम-नशीनो, तुम्हें क्या ख़ुद मुझे भी गम नहीं है.
आंखों की क़सम
आप की मख़्मूर आंखों की क़सम, मेरी मय-ख़्वारी अभी तक राज़ है.
साज़-ए-हस्ती
छुप गए वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर, अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है.