'कुछ बता तू ही नशेमन का पता...' पढ़ें मजरूह सुल्तानपुरी के वह शेर जिसने लोगों का दिल जीता.

बचा लिया मुझे तूफां की मौज ने वरना, किनारे वाले सफीना मिरा डुबो देते.

सफीना मिरा

सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चराग, जहां तलक ये सितम की सियाह रात चले.

सितम की सियाह

अब सोचते हैं लाएंगे तुझ सा कहां से हम, उठने को उठ तो आए तिरे आस्तां से हम.

तिरे आस्तां

जबां हमारी न समझा यहां कोई 'मजरूह', हम अजनबी की तरह अपने ही वतन में रहे.

जबां हमारी

'मजरूह' काफिले की मिरे दास्तां ये है, रहबर ने मिल के लूट लिया राहजन के साथ.

काफिले की मिरे

कुछ बता तू ही नशेमन का पता, मैं तो ऐ बाद-ए-सबा भूल गया. 

तू ही नशेमन