'प्यास कहती है चलो रेत निचोड़ी जाए', मेराज फैजाबादी के पढ़ें बेहतरीन शेर.
हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताब,
पढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियां हम ने.
चेहरे की झुर्रियां
मुझ को थकने नहीं देता ये जरुरत का पहाड़, मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते.
जरुरत का पहाड़
प्यास कहती है चलो रेत निचोड़ी जाए,
अपने हिस्से में समुंदर नहीं आने वाला.
रेत निचोड़ी जाए
जो कह रहे थे कि जीना मुहाल है तुम बिन,
बिछड़ के मुझ से वो दो दिन उदास भी न रहे.
जीना मुहाल
आज भी गांव में कुछ कच्चे मकानों वाले,
घर में हम-साए के फाका नहीं होने देते.
कच्चे मकानों वाले
तेरे बारे में जब सोचा नहीं था,
मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था.
मैं तन्हा था