'अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है', परवीन शाकिर के वह शेर जिन्हें पढ़कर प्रेम हो जाए.
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया, इश्क के इस सफर ने तो मुझ को निढाल कर दिया.
वो मुझ को छोड़ के जिस आदमी के पास गया, बराबरी का भी होता तो सब्र आ जाता.