'लोग बे-मेहर न होते होंगे...' पढ़ें अदा जाफरी के सदाबहार शेर.
जिस की जानिब 'अदा' नजर न उठी, हाल उस का भी मेरे हाल सा था.
रीत भी अपनी रुत भी अपनी, दिल रस्म-ए-दुनिया क्या जाने.
लोग बे-मेहर न होते होंगे, वहम सा दिल को हुआ था शायद.
बोलते हैं दिलों के सन्नाटे, शोर सा ये जो चार-सू है अभी.
कोई ताइर इधर नहीं आता, कैसी तक्सीर इस मकां से हुई.
सदियों से मिरे पांव तले जन्नत-ए-इंसां, मैं जन्नत-ए-इंसां का पता ढूंढ रही हूं.