04 Nov 2025

'कोई समझे तो एक बात कहूं...' पढ़ें फ़िराक़ गोरखपुरी के मोहब्बत शेर.

मुद्दत से

एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें, और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं.

कदमों की आहट

बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं.

तुम मुख़ातिब

तुम मुख़ातिब भी हो करीब भी हो, तुम को देखें कि तुम से बात करें.

बात कहूं

कोई समझे तो एक बात कहूं, इश्क तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं.

बात कहूं

मौत का भी इलाज हो शायद, जिंदगी का कोई इलाज नहीं.

मोहब्बत में

हम से क्या हो सका मोहब्बत में, खैर तुम ने तो बेवफाई की.