'शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है...' पढ़ें शहरयार के शानदार शेर.

जहां में होने को ऐ दोस्त यूं तो सब होगा, तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा.

ऐ दोस्त

सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का, यही तो वक्त है सूरज तिरे निकलने का.

सियाह रात

क्या कोई नई बात नजर आती है हम में, आईना हमें देख के हैरान सा क्यूं है.

नजर आती

शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है, रिश्ता ही मिरी प्यास का पानी से नहीं है.

कोई दरिया

हर मुलाकात का अंजाम जुदाई क्यूं है, अब तो हर वक्त यही बात सताती है हमें.

अंजाम जुदाई

सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यूं है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है.

हर शख्स

Read Shahryar's wonderful couplet