'रात तो वक्त की पाबंद है ढल जाएगी', पढ़ें वसीम बरेलवी के शानदार शेर.
अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपाएं कैसे,
तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आएं कैसे.
नजर आएं
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता,
तुम को भी तो अंदाजा लगाना नहीं आता.
अंदाजा लगाना
रात तो वक्त की पाबंद है ढल जाएगी,
देखना ये है चरागों का सफर कितना है.
वक्त की पाबंद
वैसे तो इक आंसू ही बहा कर मुझे ले जाए,
ऐसे कोई तूफान हिला भी नहीं सकता.
आंसू ही बहा
शाम तक सुब्ह की नजरों से उतर जाते हैं,
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं.
नजरों से उतर
आते आते मिरा नाम सा रह गया,
उस के होंटों पे कुछ कांपता रह गया.
मिरा नाम