07 Dec 2025

'बहुत मुश्किल है बंजारा-मिज़ाजी...' पढ़ें संघर्षों के दिनों को याद दिलाते ये शेर.

क्यूं नहीं 

सब कुछ तो है क्या ढूंडती रहती हैं निगाहें, क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूं नहीं जाता.

भीड़ में तुम

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो, सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो.

बहुत आदमी

उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा, वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा.

 मोहब्बत नहीं

दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती, ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती.

शराफत

मेरी ग़ुर्बत को शराफत का अभी नाम न दे, वक़्त बदला तो तिरी राय बदल जाएगी.

बंजारा-मिज़ाजी

बहुत मुश्किल है बंजारा-मिज़ाजी, सलीक़ा चाहिए आवारगी में.