'ढूंड उजड़े हुए लोगों में वफा के मोती...' पढ़ें अहमद फराज के शानदार शेर.

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ.

सही दिल

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंजिल, कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में रहा.

मिल गई मंजिल

हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूम, कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी. 

तिरे साथ

 किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम, तू मुझ से खफा है तो जमाने के लिए आ.

तू मुझ से खफा

आज इक और बरस बीत गया उस के बगैर, जिस के होते हुए होते थे जमाने मेरे.

बरस बीत गया

ढूंड उजड़े हुए लोगों में वफा के मोती, ये खजाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलें.

मुमकिन है