रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ.
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंजिल, कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में रहा.
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूम, कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी.
किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम, तू मुझ से खफा है तो जमाने के लिए आ.
आज इक और बरस बीत गया उस के बगैर, जिस के होते हुए होते थे जमाने मेरे.
ढूंड उजड़े हुए लोगों में वफा के मोती, ये खजाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलें.