14 Dec 2025

ज़फ़र इक़बाल के वह शेर जिसने अपने दौर में मचाया तहलका.

इंकार होना

 ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए, ये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए.

मुस्कुराते हुए

मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो 'ज़फ़र', साफ़ पहचान लिया जाता हूँ रोया हुआ मैं.

दीदार से आगे

अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात, जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए.

फ़ुर्सत न थी

उस को भी याद करने की फ़ुर्सत न थी मुझे, मसरूफ़ था मैं कुछ भी न करने के बावजूद.

 देख रहा हूं

टकटकी बांध के मैं देख रहा हूं जिस को, ये भी हो सकता है वो सामने बैठा ही न हो.

जवां होने की

सफ़र पीछे की जानिब है कदम आगे है मेरा, मैं बूढ़ा होता जाता हूं जवां होने की ख़ातिर.