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अनाथ बच्चों को भूल गई सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने दिलाई याद, शिक्षा से वंचित ऐसे बच्चों का मांगा डेटा

by Sanjay Kumar Srivastava
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे उन अनाथ बच्चों का सर्वेक्षण करें, जिन्हें बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत शिक्षा से वंचित किया गया है.

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे उन अनाथ बच्चों का सर्वेक्षण करें, जिन्हें बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत शिक्षा से वंचित किया गया है. जस्टिस बीवी नागरत्ना और केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र से कहा कि वह 2027 में होने वाली आगामी जनगणना में ऐसे बच्चों के डेटा को शामिल करने पर विचार करे. शीर्ष अदालत अनाथों के लिए चिंता जताने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. पीठ ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे अनाथ बच्चों का सर्वेक्षण करें. याचिकाकर्ता ने कहा कि अनाथों की सुरक्षा और देखभाल के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाएं अपर्याप्त हैं, जिन पर विचार करने की आवश्यकता है.

पीठ ने चार सप्ताह का दिया समय

शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को उन अनाथ बच्चों का सर्वेक्षण करना होगा जिन्हें अधिनियम के प्रावधानों के तहत पहले ही प्रवेश मिल चुका है, साथ ही उन बच्चों का भी सर्वेक्षण करना होगा, जिन्हें अधिनियम के तहत मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से वंचित किया गया है. यदि ऐसा है, तो किन कारणों से. राज्यों को अपने-अपने हलफनामों के साथ कारण बताना होगा. पीठ ने योग्य बच्चों को आस-पास के स्कूलों में प्रवेश सुनिश्चित करने के लिए कहा. पीठ ने अधिकारियों को निर्देशों का पालन करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है. यह रिकॉर्ड में आया कि गुजरात, दिल्ली, मेघालय और सिक्किम सहित कई राज्यों ने अनाथ बच्चों को कानून की धारा 12 (1) (सी) में निर्धारित कमजोर वर्गों और वंचित समूहों के लिए 25 प्रतिशत कोटे में शामिल करने के लिए पहले ही अधिसूचनाएं जारी कर दी है. धारा 12 मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के लिए स्कूल की जिम्मेदारी की सीमा से संबंधित है.

अनाथ बच्चों की जिम्मेदारी सरकार कीः सॉलिसिटर जनरल

पीठ ने कहा कि अन्य राज्य भी इसी तरह की अधिसूचना जारी करने पर विचार कर सकते हैं और रिकॉर्ड पर संबंधित हलफनामा दाखिल कर सकते हैं. पीठ ने मामले की सुनवाई 9 सितंबर के लिए स्थगित कर दी. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने केंद्र को आगामी जनगणना में अनाथ बच्चों का डेटा शामिल करने पर विचार करने के निर्देश देने की मांग की. पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि अनाथों के संबंध में भी एक बॉक्स होना चाहिए. पीठ ने कहा कि तब सरकार को अनाथ बच्चों का डेटा स्वतः ही मिल जाएगा. मेहता ने कहा कि ऐसा होना चाहिए. मैं इस पर विचार करूंगा क्योंकि अनाथ बच्चे हमारी जिम्मेदारी हैं. जब याचिकाकर्ता ने कहा कि केंद्र को याचिका में उठाए गए पहलुओं पर एक विस्तृत हलफनामा दायर करने के लिए कहा जाना चाहिए, तो पीठ ने कहा कि वह सभी मुद्दों पर विचार करेगी.

देश में अनाथ बच्चों के लिए कुछ नहीं

पीठ ने कहा कि सभी उच्च न्यायालयों में किशोर न्याय समितियां हैं और इन मुद्दों पर राष्ट्रीय स्तर पर विचार-विमर्श भी किया जा रहा है. पीठ ने कहा कि इसलिए स्थिति पहले जितनी खराब नहीं है. सकारात्मक चीजें भी हो रही हैं. याचिकाकर्ता ने दलील दी कि भारत में कमजोर वर्ग के बच्चों को छात्रवृत्ति, आरक्षण, नौकरी, ऋण आदि जैसे ढेरों समर्थन और अवसर दिया जाता है, लेकिन अनाथ बच्चों के लिए कुछ नहीं है. उन्होंने कहा कि यूनिसेफ का अनुमान है कि भारत में 2.5 करोड़ अनाथ बच्चे हैं. याचिकाकर्ता ने कहा कि एक देश के तौर पर हमारे पास अनाथ बच्चों की आधिकारिक संख्या भी नहीं है. हम अभी ऐतिहासिक जाति जनगणना कर रहे हैं और उसमें हम अनाथों की गिनती नहीं कर रहे हैं. जाति गणना के साथ भारत की 16वीं जनगणना 2027 में की जाएगी.

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