Orissa High Court Judgement: यह टिप्पणी उड़ीसा उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने की.पीठ ने संपत्ति बंटवारे के एक मामले में विरोधी पक्ष का डीएनए परीक्षण कराने की याचिका खारिज कर दी.
Orissa High Court Judgement: उड़ीसा उच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मां के बयान के बावजूद बच्चे का डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश देना उसके मातृत्व का अपमान और कानून के विरुद्ध होगा. यह टिप्पणी उड़ीसा उच्च न्यायालय की एकल पीठ के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीपी राउत्रे ने की, जिन्होंने संपत्ति बंटवारे के एक मामले में विरोधी पक्ष का डीएनए परीक्षण कराने की याचिका खारिज कर दी. विरोधी पक्ष ने निचली अदालत के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें एक व्यक्ति का डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश देने से इनकार कर दिया गया था. न्यायमूर्ति राउत्रे ने 1 सितंबर को अपने फैसले में कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस मामले में व्यक्ति का डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश देना उचित होगा. याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करने वाले निचली अदालत के आदेश में कोई खामी नहीं है. परिणामस्वरूप, सिविल विविध याचिका (सीएमपी) खारिज की जाती है.अदालत ने यह भी कहा कि संबंधित व्यक्ति अब 58 वर्ष का हो चुका है. इसलिए निचली अदालत ने सही कहा है कि इस समय डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश देने से कोई सार्थक परिणाम नहीं निकलेगा.
संपत्ति बंटवारे में DNA परीक्षण प्रासंगिक नहीं
न्यायमूर्ति राउत्रे ने कहा कि इस मामले में यह निश्चित रूप से, वाद विभाजन के लिए है, जहां विरोधी पक्ष, एक व्यक्ति की मां के साक्ष्य के बावजूद, उसके माता-पिता होने पर विवाद करता है. व्यक्ति की मां ने अपनी जिरह में कहा है कि वह व्यक्ति थुता बुदुला के माध्यम से उसका पुत्र है. इसके अलावा विपक्षी पक्ष, थुता बुदुला, जो अब मर चुका है, की पत्नी के रूप में मां की स्थिति पर विवाद नहीं करता है, न ही वह किसी भी समय थुता बुदुला और मां के बीच वैध विवाह पर विवाद करता है. अदालत ने कहा कि विपक्षी पक्ष, एक तीसरा व्यक्ति होने के नाते, ऐसा करने के लिए अधिकृत भी नहीं है और कहा कि ऐसी स्थिति में मां की स्वीकारोक्ति के आधार पर बच्चे का डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश देना उसके मातृत्व का अपमान होगा और साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 में वर्णित कानून के विरुद्ध होगा. इसके अलावा अदालत ने कहा कि यह समझ से परे है कि विभाजन के ऐसे मामले में डीएनए परीक्षण कैसे प्रासंगिक होगा, जहां पक्षों की संयुक्त परिवार के सदस्यों के रूप में स्थिति को उनके संबंधित हिस्से का निर्धारण करने के लिए देखा जाना आवश्यक है.
साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 का रखना होगा ख्याल
अदालत ने कहा कि यहां यह याद दिलाना ज़रूरी है कि किसी व्यक्ति को दूसरे का पुत्र मानने की मान्यता केवल रक्त संबंध के आधार पर निर्धारित नहीं की जानी चाहिए, बल्कि समाज में उसकी मान्यता महत्वपूर्ण है. अदालत ने यह भी कहा कि हमारे विचार से, जब किसी व्यक्ति के निजता के अधिकार (जबरन मेडिकल जांच न कराने) और सच्चाई तक पहुंचने के न्यायालय के कर्तव्य के बीच स्पष्ट टकराव हो, तो न्यायालय को अपने विवेक का प्रयोग पक्षों के हितों को संतुलित करने और इस बात पर उचित विचार करने के बाद ही करना चाहिए कि क्या मामले में न्यायोचित निर्णय के लिए डीएनए परीक्षण अत्यंत आवश्यक है. न्यायालय ने कहा कि किसी बच्चे के पितृत्व से संबंधित मामले में, जब भी ऐसा अनुरोध किया जाता है, न्यायालय द्वारा डीएनए परीक्षण का निर्देश सामान्य रूप से या नियमित रूप से नहीं दिया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति राउत्रे ने अपने फैसले में कहा कि न्यायालय को साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत अनुमान, ऐसे आदेश के पक्ष और विपक्ष और सर्वोच्च आवश्यकता के परीक्षण सहित विभिन्न पहलुओं पर विचार करना होगा, कि क्या न्यायालय के लिए ऐसे परीक्षण के बिना सच्चाई तक पहुंचना संभव नहीं है.
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