Air pollution: दिल्ली की वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंचने से स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने गंभीर चिंता जताई है. उनका कहना है कि प्रदूषित हवा न केवल श्वसन रोगों, बल्कि कैंसर और कमजोर प्रतिरोधक क्षमता जैसी गंभीर समस्याओं का भी कारण बन रही है.
Air pollution: दिल्ली की वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंचने से स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने गंभीर चिंता जताई है. उनका कहना है कि प्रदूषित हवा न केवल श्वसन रोगों, बल्कि कैंसर और कमजोर प्रतिरोधक क्षमता जैसी गंभीर समस्याओं का भी कारण बन रही है. स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2025 रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में भारत में जहरीली हवा से 20 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई. दक्षिण एशिया में PM2.5 का स्तर विश्व में सबसे अधिक है. विशेषज्ञों ने इसे पर्यावरणीय और मानवीय संकट बताया है. चेतावनी दी है कि फेफड़ों की क्षति गंभीर होती है, इसलिए रोकथाम ही सबसे प्रभावी उपाय है. पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में प्रदूषण कई कारणों से होता है. जिसमें घरों में जलने वाले ईंधन से प्रदूषण का लेवल लगभग 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. जबकि वाहन, कोयला आधारित बिजली संयंत्र, औद्योगिक उत्सर्जन और कृषि अवशेषों को जलाने से यह समस्या और बढ़ जाती है. विशेषज्ञों ने कहा कि दिल्ली जैसे घने शहरों में यातायात की भीड़ और निर्माण की धूल खतरे को बढ़ा देती है.
भारत में दिल्ली सबसे ज्यादा खतरनाक
रोहिणी स्थित जयपुर गोल्डन अस्पताल में श्वसन चिकित्सा, निद्रा और इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. राकेश के. चावला ने कहा कि भारत के वायु प्रदूषण में दिल्ली सबसे ज्यादा खतरनाक है. उन्होंने बताया कि हर सर्दी में पार्टिकुलेट मैटर का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से लगभग 10 गुना बढ़ जाता है. उन्होंने कहा कि यह फेफड़ों पर लगातार हमला है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमज़ोर करता है. जिससे फेफड़ों की पुरानी बीमारियां बढ़ जाती हैं.उन्होंने कहा कि दिल्ली में इलेक्ट्रिक सार्वजनिक परिवहन में निवेश और निर्माण व कचरा जलाने पर सख्त नियंत्रण की आवश्यकता है. न्यूक्लियर मेडिसिन चिकित्सक डॉ. चारु जोरा गोयल ने कहा कि सर्दियों और त्योहारों के मौसम की शुरुआत के साथ वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा होता है. डॉ. गोयल ने कहा कि लंबे समय तक सूक्ष्म कण पदार्थों, विशेष रूप से पीएम 2.5 और पीएम 10 के संपर्क में रहने से धूम्रपान न करने वालों में भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. ये प्रदूषक रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे मूत्राशय, स्तन और अन्य अंगों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.
कैंसर और श्वसन रोगों का बढ़ा खतरा
सीके बिड़ला अस्पताल में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के निदेशक डॉ. मंदीप सिंह मल्होत्रा ने कहा कि वायु प्रदूषण अपने आप में खतरा है. यदि प्रदूषण से संबंधित कैंसर से पीड़ित रोगी प्रदूषित वातावरण में रहता है, तो उपचार कम प्रभावी हो जाता है. प्रदूषण कैंसर की घटनाओं को बढ़ाता है. उपचार की प्रभावशीलता को कम करता है. स्टीडफ़ास्ट न्यूट्रिशन के संस्थापक अमन पुरी ने कहा कि अतिसूक्ष्म कण प्रदूषक फेफड़ों में जमा हो जाते हैं, जिससे सूजन होती है और ऑक्सीजन की आपूर्ति सीमित हो जाती है. जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल के कंसल्टेंट डॉ. आदित्य के. चावला ने कहा कि फेफड़ों की कार्यक्षमता एक बार खत्म हो जाने पर कोई भी दवा उसे ठीक नहीं कर सकती. एकमात्र प्रभावी बचाव रोकथाम है. ज़ीऑन लाइफसाइंसेज के वरिष्ठ प्रबंधक डॉ. आशीष कुमार ने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रदूषित हवा पहले से ही इलाज करा रहे मरीज़ों की मौजूदा स्थिति को और भी बदतर बना देती है. खराब हवा के लगातार संपर्क में रहने से रिकवरी और ऑक्सीजन का स्तर काफी कम हो जाता है.
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