दस्तावेजों की जांच के बाद पता चला कि यह अवैध है, जिसके बाद कार्रवाई की गई. इस ढांचे के बारे में भी शिकायतें थीं कि अस्पताल आने वाले लोगों को असुविधा हो रही है.
Dehradun: सरकारी दून मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के परिसर में दशकों से खड़ी एक अवैध रूप से निर्मित मजार को ध्वस्त कर दिया गया. जबकि राज्य वक्फ बोर्ड ने दावा किया है कि यह एक वैध संरचना है. कोतवाली पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने शनिवार को बताया कि शहर प्रशासन ने क्षेत्र को सील करने के बाद पुलिस की मौजूदगी में शुक्रवार रात दो जेसीबी उत्खनन मशीनों का उपयोग करके संरचना को ध्वस्त कर दिया. अधिकारियों ने कहा कि ऋषिकेश निवासी ने सीएम हेल्पलाइन पोर्टल पर अस्पताल परिसर में मजार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.
अस्पताल आने वाले लोगों को हो रही थी असुविधा
उन्होंने बताया कि ढांचे से संबंधित दस्तावेजों की जांच के बाद यह पता चला कि यह अवैध है, जिसके बाद यह कार्रवाई की गई. इस ढांचे के बारे में भी शिकायतें थीं कि इससे अस्पताल आने वाले लोगों की आवाजाही में असुविधा हो रही है, जो पहले से ही जगह की कमी से जूझ रहे हैं. अधिकारियों ने बताया कि अस्पताल प्रशासन ने उत्तराखंड सरकार को पत्र लिखकर इसे हटाने की मांग की थी. राज्य में पिछले करीब दो साल से अवैध मजारों को ध्वस्त करने का अभियान चल रहा है. हालांकि, राज्य वक्फ बोर्ड के सूत्रों ने दावा किया कि मजार कानूनी थी. उन्होंने इस कार्रवाई को एकतरफा भी बताया जिसमें बोर्ड को विश्वास में नहीं लिया गया.
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सीएम से मिले उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष
मजार के 100 साल पुराना होने का दावा करते हुए उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने पीटीआई को बताया कि इसे बाबा कमाल शाह नामक एक सूफी संत के पार्थिव शरीर पर बनाया गया था. शम्स ने कहा, “यह ढांचा वक्फ बोर्ड के पास पंजीकृत था. मैंने इस मामले को मुख्यमंत्री (पुष्कर सिंह धामी) के समक्ष उठाया है, जिन्होंने मुझे आश्वासन दिया है कि वह इस पर गौर करेंगे.
विध्वंस पर प्रतिक्रिया देते हुए, राज्य कांग्रेस के उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा, “जबकि सरकार के पास किसी भी अवैध चीज के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है, जिस तरह से मजार को रातोंरात ध्वस्त कर दिया गया, उससे पता चलता है कि वे (सरकार) किसी न किसी बहाने से केवल नफरत फैलाना चाहते हैं.उन्होंने कहा, “सरकार या तो मजारें ध्वस्त कर सकती है या मदरसों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है, इसके अलावा कुछ नहीं. बताया जाता है कि यह मजार सन् 2000 में उत्तराखंड को राज्य का दर्जा मिलने से पहले से ही थी.
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