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संविधान से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की मांग, दत्तात्रेय होसबोले ने फिर छेड़ी बहस

by Rishi
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RSS: होसबोले ने कांग्रेस पर आपातकाल के दौरान नागरिक स्वतंत्रता को कुचलने और प्रेस की आजादी पर अंकुश लगाने का आरोप लगाते हुए माफी की मांग की.

RSS: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने गुरुवार को संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की मांग उठाकर एक बार फिर राजनीतिक विवाद को हवा दे दी है. दिल्ली में आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम में होसबोले ने कहा कि ये शब्द मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे और इंदिरा गांधी सरकार ने 1975 के आपातकाल के दौरान इन्हें जोड़ा था. उन्होंने सवाल उठाया, “संविधान की प्रस्तावना शाश्वत है. क्या समाजवाद जैसी विचारधारा भारत के लिए शाश्वत है?”

होसबोले ने कांग्रेस पर लगाए आरोप

होसबोले ने कांग्रेस पर आपातकाल के दौरान नागरिक स्वतंत्रता को कुचलने और प्रेस की आजादी पर अंकुश लगाने का आरोप लगाते हुए माफी की मांग की. उन्होंने कहा, “जिन लोगों ने आपातकाल में ये हरकतें कीं, वे आज संविधान की प्रति लेकर घूम रहे हैं. उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए.” इस बयान ने कांग्रेस को तीखी प्रतिक्रिया देने का मौका दिया. कांग्रेस ने इसे संविधान विरोधी कदम करार देते हुए कहा कि RSS और बीजेपी बाबासाहेब आंबेडकर के संविधान को नष्ट करने की साजिश रच रहे हैं.

क्या ये शब्द हटाए जा सकते हैं? यह सवाल अब राजनीतिक और कानूनी बहस का केंद्र बन गया है. 1976 में 42वें संशोधन के जरिए ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए थे. उस समय आपातकाल के दौरान संसद और न्यायपालिका की स्वतंत्रता सीमित थी, जिसे होसबोले ने अपने भाषण में रेखांकित किया. हालांकि, इन शब्दों को हटाना इतना आसान नहीं है. संविधान में संशोधन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत और कम से कम 50% राज्यों की सहमति आवश्यक है.

कांग्रेस ने बताया संविधान की आत्मा पर हमला

कांग्रेस ने इस मांग को ‘संविधान की आत्मा पर हमला’ बताया और कहा कि RSS शुरू से ही आंबेडकर के संविधान का विरोधी रहा है. पार्टी ने यह भी याद दिलाया कि 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी नेताओं ने 400 से अधिक सीटों के साथ संविधान बदलने की बात कही थी, जिसे जनता ने खारिज कर दिया. दूसरी ओर, RSS का कहना है कि ये शब्द आपातकाल के दौरान जबरन जोड़े गए और इनकी प्रासंगिकता पर बहस होनी चाहिए.

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इन शब्दों को हटाना संवैधानिक रूप से जटिल और राजनीतिक रूप से जोखिम भरा होगा. ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ भारत की विविधता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को दर्शाते हैं, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माने जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पहले कई बार संविधान के मूल ढांचे को अक्षुण्ण रखने की बात कही है.

ये शब्द संविधान की मूल भावना का हिस्सा नहीं थे: RSS

इस विवाद ने एक बार फिर RSS और कांग्रेस के बीच वैचारिक टकराव को उजागर किया है. जहां RSS का तर्क है कि ये शब्द संविधान की मूल भावना का हिस्सा नहीं थे, वहीं कांग्रेस का कहना है कि यह भारत की बहुलतावादी और समावेशी पहचान पर हमला है. फिलहाल, इस मांग के तत्काल लागू होने की संभावना कम दिखती है, लेकिन यह बहस निश्चित रूप से देश की राजनीति को और गर्माएगी.

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