मालेगांव विस्फोट के पीड़ित शाहिद नदीम ने कहा कि वो पीड़ितों के कुछ परिवार इस फैसले के खिलाफ स्वतंत्र अपील दायर करेंगे. उन्होंने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) पर मुकदमे के दौरान मुकर गए गवाहों के खिलाफ झूठी गवाही का मुकदमा न चलाने का आरोप भी लगाया.
Malegaon Blast Case Verdict: मालेगांव विस्फोट मामले में अदालत के फैसले पर पीड़ितों के परिजनों ने आपत्ति जताई है. पीड़ितों के परिजनों ने कहा कि वो इस फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट जाएंगे. परिजनों ने कहा, “2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में निचली अदालत का फैसला अस्वीकार्य है और जरूरत पड़ने पर वह न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे, ये बात इस त्रासदी की सबसे छोटी पीड़िता फरहीन (10) के पिता ने गुरुवार को कही. उत्तरी महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में मीडिया से बात करते हुए 67 वर्षीय लियाकत शेख ने अपनी बेटी की तस्वीर दिखाते हुए कहा, “अदालत का फैसला गलत है. हम न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.”
क्या बोले वकील शाहिद नदीम?
मालेगांव विस्फोट के पीड़ित शाहिद नदीम ने कहा कि वो पीड़ितों के कुछ परिवार इस फैसले के खिलाफ स्वतंत्र अपील दायर करेंगे. उन्होंने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) पर मुकदमे के दौरान मुकर गए गवाहों के खिलाफ झूठी गवाही का मुकदमा न चलाने का आरोप भी लगाया. इस मामले में मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने गुरुवार को पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित मामले के सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया. उस घटना को याद करते हुए, लियाकत शेख, जो उस समय ड्राइवर का काम करते थे, ने कहा, “फरहीन 29 सितंबर, 2008 की शाम को मालेगांव शहर के भिक्कू चौक पर वड़ा-पाव खरीदने के लिए घर से निकली थीं. मैंने एक धमाके की आवाज सुनी. हम विस्फोट स्थल के पास, एक टिन की छत वाले घर में रहते थे. बाद में हमारे घर की छत पर छर्रे मिले. मैं अपनी बेटी को ढूंढने गया, लेकिन वह नहीं मिली. बाहर अंधेरा था. किसी ने बताया कि घायलों में एक लड़की भी है. मैं और मेरी पत्नी अस्पताल भागे, जहां हमने उसे बुरी हालत में पाया.” उन्होंने बताया कि तत्कालीन आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) प्रमुख हेमंत करकरे ने पर्याप्त सबूतों के साथ आरोपियों को गिरफ्तार किया था. विस्फोट में लियाकत शेख की बेटी सहित छह लोग मारे गए और 101 घायल हुए.
पीड़ितों के परिजनों ने लगाई गुहार
निसार अहमद, जिनके बेटे सैय्यद अजहर की भी मौत हो गई थी, ने कहा कि उन्हें न्याय नहीं मिला और वे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे. उन्होंने कहा कि किसी भी विस्फोट के पीड़ितों को, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, न्याय मिलना चाहिए. उस्मान खान, जिनके भतीजे इरफान खान (22) की विस्फोट में मृत्यु हो गई, ने कहा कि इरफान ऑटो रिक्शा चलाता था और भिक्कू चौक पर चाय पीने गया था जब विस्फोट हुआ. उन्होंने कहा, “पहले हम उसे एक स्थानीय अस्पताल ले गए, वहां से हम उसे नासिक ले गए.” उन्होंने आगे कहा कि नासिक अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें उसे मुंबई ले जाने के लिए कहा. खान ने कहा कि उसे मुंबई के सरकारी जे.जे. अस्पताल ले जाया गया, लेकिन 10 घंटे के इलाज के बाद उसकी मृत्यु हो गई. उन्होंने कहा कि वह फैसले से खुश नहीं हैं. उन्होंने पूछा, “पहले इस मामले में कुछ मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया था और बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गई. अब इन लोगों को भी दोषी नहीं ठहराया गया है, तो फिर दोषी कौन है?”
‘नाकामियों को उजागर कर रहा फैसला’
पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील शाहिद नदीम ने कहा कि बरी होने का फैसला एनआईए की “बड़ी नाकामियों” को उजागर करता है. उन्होंने न्यूज एजेंसी PTI को बताया, “ऐसा लगता है कि प्रभावी रणनीति का अभाव है. मुकदमे के दौरान गवाह मुकर गए, फिर भी पीड़ितों के अनुरोध के बावजूद, एनआईए ने उनमें से किसी के खिलाफ झूठी गवाही का आरोप नहीं लगाया. पीड़ित अभी भी उस सदमे से जूझ रहे हैं जिसे उन्होंने झेला था. वे न्याय पाने के लिए दृढ़ हैं और फैसले की समीक्षा के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट में एक स्वतंत्र अपील दायर करके कानूनी उपाय अपनाएंगे.” नदीम ने कहा, “एक वकील के रूप में, जो रोजाना मुकदमे में उपस्थित रहा, मेरा मानना है कि अगर एनआईए ने पीड़ितों की चिंताओं को प्राथमिकता दी होती, तो वह बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी.” अभियोजन पक्ष के 323 गवाहों में से 37 ने अपनी गवाही के दौरान अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया, और उन्हें ‘प्रतिकूल’ घोषित कर दिया गया.
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