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जानें प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया निर्देश, केंद्र सरकार से भी मांगा जवाब

by Divyansh Sharma
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Supreme court

Places of Worship Act-1991: निर्देश के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश तक देश में किसी भी निचली अदालतों में पूजा स्थलों के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा.

Places of Worship Act-1991: देश में बढ़ते मस्जिदों और मंदिरों के दावे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत बड़ा निर्देश जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश तक देश में किसी भी निचली अदालतों में पूजा स्थलों के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा. साथ ही केंद्र सरकार से 4 हफ्तों के अंदर इस मामले पर अपना पक्ष रखने को कहा है.

कई मामलों में सर्वे आदेश देने पर लगाई रोक

भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की विशेष पीठ ने गुरुवार को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया है. पीठ ने इस दौरान आदेश जारी किया कि ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा शाही ईदगाह, संभल जामा मस्जिद जैसी पेंडिंग मुकदमों में कोर्ट को सर्वे और अंतरिम या अंतिम आदेश पारित नहीं करना है.

साथ ही पीठ ने साफ तौर पर कहा कि यह मामले कोर्ट में पेंडिंग हैं. ऐसे में सुनवाई तक देश में किसी धार्मिक स्थलों को लेकर कोई नया मामला दाखिल नहीं किया जाएगा और पेंडिंग केस पर फैसला नहीं दिया जाएगा. हालांकि, पीठ ने इस दौरान मस्जिदों/दरगाहों जैसे पूजा स्थलों के खिलाफ वर्तमान में लंबित मुकदमों की कार्यवाही पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया.

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साल 2020 में दायर की गई थी मुख्य याचिका

इसके अलावा पीठ ने केंद्र सरकार से चार सप्ताह के अंदर पूजा स्थल अधिनियम पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है. इस दौरान पीठ को बताया गया कि देशभर में 10 मस्जिदों/मंदिरों के खिलाफ 18 मुकदमे पेंडिंग हैं. सुनवाई के बीच ही जमीयत उलेमा-ए-हिंद की रिट याचिका भी दाखिल की गई है.

वहीं, DMK, RJD सांसद मनोज कुमार झा, NSP-SP विधायक जितेंद्र अव्हाड़ जैसे कुछ नेताओं ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की सुरक्षा की मांग की है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था. यह एक्ट 15 अगस्त 1947 की स्थिति से पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र में परिवर्तन पर रोक लगाता है. इस एक्ट को असंवैधानिक बनाने के लिए सबसे पहले अश्विनी कुमार ने साल 2020 में मुख्य याचिका दाखिल की थी.

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