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रामगिरि महाराज ने दिया विवादित बयान, कहा- ‘वंदे मातरम’ होना चाहिए भारत का राष्ट्रगान

by Live Times
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Ramgiri Maharaj: धार्मिक नेता रामगिरि महाराज ने राष्ट्रगान को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि 'जन, गण, मन' की जगह 'वंदे मातरम' भारत का राष्ट्रगान होना चाहिए.

Ramgiri Maharaj: धार्मिक नेता रामगिरि महाराज ने राष्ट्रगान को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि ‘जन, गण, मन’ की जगह ‘वंदे मातरम’ भारत का राष्ट्रगान होना चाहिए.

Ramgiri Maharaj: धर्मगुरु रामगिरि महाराज ने राष्ट्रगान और भारत के महान कवि रबींद्रनाथ टैगोर की आलोचना की है. इसके बाद एक नए विवाद ने तूल पकड़ लिया है. उन्होंने महाराष्ट्र के संभाजीनगर में कहा कि ‘जन गण मन’ की जगह ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्रगान होना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में वे इसके लिए संघर्ष भी करेंगे. उन्होंने दावा किया है कि रबींद्रनाथ टैगोर ने यह गीत ब्रिटिश राजा जॉर्ज पंचम के लिए लिखा था, न कि राष्ट्र के लिए. यह पहली बार नहीं है कि जब रामगिरि महाराज ऐसा बयान दिया है.

राष्ट्रगान को लेकर आक्रामक दिखे रामगिरि

इस मुद्दे पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि बहुत कम लोग राष्ट्रगान का इतिहास जानते हैं. उन्होंने आगे कहा कि मैं इस सच को लोगों के सामने लाना चाहता हूं. उनकी मानें तो भारत के महान कवि रबींद्रनाथ टैगोर ने यह गीत साल 1911 में कलकत्ता में लिखा था, जब भारत गुलाम था. उन्होंने आगे कहा कि यह गीत जॉर्ज पंचम एक ब्रिटिश राजा, के समर्थन में लिखा था. जो भारतीयों पर अत्याचार करता था. यह गीत भारत के लोगों या राष्ट्र के लिए नहीं बल्कि ब्रिटिश राजा के लिए था. इसीलिए उन्होंने कहा कि ‘जन, गण, मन’ की जगह ‘वंदे मातरम’ भारत का राष्ट्रगान होना चाहिए.

कब अपनाया गया था राष्ट्रगान?

रबींद्रनाथ टैगोर ने मूल रूप से बंगाली भाषा में ‘जन गण मन’ को लिखा था. 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा की ओर से इसे हिंदी संस्करण में राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था. यहां बता दें कि यह गीत साल 1911 में कोलकाता में रवीन्द्रनाथ टैगोर की ओर से लिखा गया था. अब इसे लेकर रामगिरि महाराज ने विवादित बयान दिया है.

कौन हैं महागिरि महाराज?

रामगिरि महाराज का असली नाम सुरेश रामकृष्ण राणे है. उनका जन्म जलगांव में हुआ था. उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई उसी क्षेर में की है. नौवीं कक्षा में वे स्वध्याय केंद्र से जुड़ गए और गीता का अध्ययन शुरू किया. दसवीं के बाद उन्होंने अहमदनगर के केदगांव ITI कॉलेज में दाखिला लिया. लेकिन बाद में उन्होंने आध्यात्म का रास्ता चुना. वर्ष 2009 में उन्होंने नारायणगिरि महाराज से दीक्षा ली. नारायणगिरि महाराज के निधन के बाद उन्होंने सरला द्वीप के द्रष्टा का पदभार संभाला.

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