India vs Pak: ऑपरेशन सिन्दूर से बौखलाए पाकिस्तान ने पहले खुद मिसाइल दागी, खुद ही सीजफायर तोड़ी, फिर जब भारत ने उसका पलट कर जवाब दिया तो उससे ये भी नहीं देखा गया. जिसके बाद वो अमेरिका के पास जा कर भारत को रोकने के लिए कहता है. ये पहली बार नहीं जब भारत के मुंहतोड़ पलटवार के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका का दरवाजा खटखटाया हो.
India vs Pak: पाकिस्तान का इतिहास यह स्पष्ट करता है कि वह युद्ध में कभी भारत का सामना सीधे तौर पर नहीं कर सका. हर बार उसने या तो धोखे से हमला किया या फिर अंतरराष्ट्रीय दबाव के सहारे अपनी हार से बचने की कोशिश की. अमेरिका भले ही भारत का दोस्त हो पर पाक के लिए हमेशा से शरणस्थली रहा है, चाहे वह सैन्य सहायता हो, आर्थिक मदद हो या फिर कूटनीतिक सहारा. अमेरिका ने हमेशा कहीं न कहीं पाकिस्तान का साथ दिया ही है. लेकिन इस सहयोग के बाद भी पाकिस्तान कभी जीत नहीं सका, क्योंकि भारत ने हर बार न सिर्फ उसका सामना किया, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी बेनकाब किया. आज भी जब भारत निर्णायक कार्रवाई करता है, तो पाकिस्तान अमेरिका के दरवाजे अपनी जान की भीख मांगता मिलता है. यही उसकी रणनीति और कायरता की असली पहचान है.
धोखेबाजी की फितरत
पाकिस्तान की इतिहास में भारत के प्रति लगातार धोखेबाज रवैये की झलक मिलती है. चाहे वह 1947 की कबायली घुसपैठ हो या 1965 और 1971 के युद्ध, या फिर 1999 के कारगिल की साजिश- हर बार पाकिस्तान ने शांति की कोशिशों के बीच भारत की पीठ में छुरा घोंपा. जब भारत ने कड़े जवाब दिए, तो पाकिस्तान ने कूटनीति की जगह अमेरिका के गेट खटखटाता दिखता है. ऐसा नहीं है पाकिस्तान की परम्परा में आज भी कुछ बदलाव आया हो, यह सिलसिला आज भी जारी है.
ऑपरेशन सिंदूर से फिर घबराया पाक

हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा चलाया गया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पाकिस्तान के हौसलों को तोड़ने के लिए काफी रहा. आतंकियों और उन्हें समर्थन दे रही पाक सरकार को जब करारा जवाब मिला, तो युद्ध की आशंका गहराई. भारत की सैन्य तैयारी और जवाबी कार्रवाई ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया और उसने एक बार फिर अमेरिका से ‘बीच-बचाव’ की गुहार लगाई. अमेरिका की तरफ दौड़ना उसकी पुरानी आदत बन चुकी है.
अमेरिका से मिलती रही है मदद, पर फिर भी नहीं मिली जीत
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान ने जब-जब भारत से युद्ध में हार देखी, तब-तब उसने अमेरिका से मदद की गुहार लगाई. 1971 में राष्ट्रपति याह्या खान ने अमेरिकी राष्ट्रपति से सीधा संपर्क कर सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी भेजने की मांग की थी, लेकिन इसका कोई असर युद्ध पर नहीं पड़ा और जिसके चलते बांग्लादेश आजाद हुआ. 1965 में भी अमेरिका ने पाकिस्तान को हथियार और आर्थिक मदद दी, लेकिन नतीजा फिर भी हार ही रहा. हर बार की तरह इस बार भी अमेरिका की छाया में पाकिस्तान ने सीजफायर की कोशिश की, लेकिन उसे निभाना उसके बस की बात नहीं रही.
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