चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बना रहा है. असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि केंद्र इस मामले पर बेहतर निर्णय लेगा.
CM Himanta Biswa Sarma on Brahmaputra Dam: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बांध बनाए जाने पर चुप्पी तोड़ी है. मीडिया से बातचीत में सीएम सरमा ने ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने के चीन के कदम पर आशंकाओं को कम करने की कोशिश की. सरमा ने कहा कि उन्हें तत्काल कोई चिंता की बात नहीं दिखती क्योंकि इस नदी को ज्यादातर पानी भूटान और अरुणाचल प्रदेश से मिलता है. उन्होंने कहा कि बीते हफ्ते शुरू हुए इस विशाल बांध के वास्तविक प्रभाव का ठीक से पता नहीं है क्योंकि अलग-अलग धारणाएं सामने आ रही हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार इस मामले में चीन के संपर्क में रहेगी.
कितनी आ रही लागत?
चीन ने शनिवार को अरुणाचल प्रदेश में भारत की सीमा के पास तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर 167.8 अरब डॉलर की लागत से बनने वाले बांध का निर्माण औपचारिक रूप से शुरू कर दिया.सीएम सरमा ने पत्रकारों से कहा, “मैं अभी चिंतित नहीं हूं क्योंकि ब्रह्मपुत्र एक विशाल नदी है और यह किसी एक स्रोत (पानी) पर निर्भर नहीं है.” असम पर बांध के संभावित प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा कि अभी ये पता नहीं है कि यह अच्छा होगा या बुरा.
‘केंद्र बेहतर निर्णय लेगा’
हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, “ब्रह्मपुत्र नदी को अपना अधिकांश पानी भूटान और अरुणाचल प्रदेश से मिलता है. वर्षा का पानी व अन्य प्रकार का पानी भी हमारे राज्य से ही प्राप्त होता है. चीन द्वारा बांध के संबंध में दो वैज्ञानिक दृष्टिकोण सामने आए हैं. पहला – यदि चीन ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह को बाधित करता है, तो पानी कम हो सकता है और परिणामस्वरूप जैव विविधता प्रभावित होगी. लेकिन एक विपरीत दृष्टिकोण यह भी है कि यदि कम पानी आएगा, तो यह बाढ़ को कम करने का काम भी करेगा. इसलिए, मुझे नहीं पता कि कौन सा सही है. इस विषय पर केंद्र बेहतर निर्णय ले सकता है और वह इस पर निर्णय लेगा. मुझे यकीन है कि वे (केंद्र) पहले से ही चीन के साथ चर्चा कर रहे होंगे या पड़ोसी देश के साथ चर्चा करेंगे.”
चीन क्यों बना रहा बांध?
चीन ब्रह्मपुत्र नदी (तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो) पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बना रहा है ताकि विशाल जलविद्युत उत्पादन कर सके, जो 300 अरब किलोवाट/घंटा बिजली पैदा करेगा. इसका उद्देश्य 2060 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी हासिल करना और तिब्बत में बिजली की मांग पूरी करना है. यह परियोजना 167.8 अरब डॉलर की लागत से हिमालय की घाटी में बन रही है.
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