Vande Mataram: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि उनकी पार्टी ‘वंदे मातरम्’ की गौरवशाली ध्वजवाहक रही है, जिसने राष्ट्र की सामूहिक आत्मा को जागृत किया और स्वतंत्रता के लिए नारे का रूप ले लिया.
Vande Mataram: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को कहा कि उनकी पार्टी ‘वंदे मातरम्’ की गौरवशाली ध्वजवाहक रही है, जिसने राष्ट्र की सामूहिक आत्मा को जागृत किया और स्वतंत्रता के लिए नारे का रूप ले लिया. भारत के राष्ट्रीय गीत की 150वीं वर्षगांठ पर खड़गे ने कहा कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित ‘वंदे मातरम्’ भारत माता की भावना का प्रतीक है और भारत की एकता और विविधता का जश्न मनाता है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वंदे मातरम की गौरवशाली ध्वजवाहक रही है. 1896 में कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष रहमतुल्लाह सयानी के नेतृत्व में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार सार्वजनिक रूप से वंदे मातरम् गाया था. उस क्षण ने स्वतंत्रता संग्राम में नई जान फूंक दी. कांग्रेस समझ गई कि ब्रिटिश साम्राज्य की फूट डालो और राज करो की नीति धार्मिक, जातिगत और क्षेत्रीय पहचानों का दुरुपयोग करके भारत की एकता को तोड़ने के लिए रची गई थी.
वंदे मातरम् ने सभी को किया एकजुट
उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् एक अदम्य शक्ति के गीत के रूप में उभरा, जिसने सभी भारतीयों को भारत माता की भक्ति में एकजुट किया. कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि 1905 में बंगाल के विभाजन से लेकर देश के वीर क्रांतिकारियों की अंतिम सांसों तक ‘वंदे मातरम्’ पूरे देश में गूंजता रहा. उन्होंने कहा कि यह लाला लाजपत राय के प्रकाशन का शीर्षक था, जो जर्मनी में फहराए गए भीकाजी कामा के झंडे पर अंकित था और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की क्रांति गीतांजलि में पाया जाता है. खड़गे ने कहा कि इसकी लोकप्रियता से भयभीत होकर अंग्रेजों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन बन गया था. उन्होंने कहा कि 1915 में महात्मा गांधी ने लिखा था कि ‘वंदे मातरम्’ विभाजन के दिनों में बंगाल के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सबसे शक्तिशाली युद्धघोष बन गया था. यह एक साम्राज्यवाद-विरोधी नारा था. कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1938 में कहा था कि पिछले 30 वर्षों से भी ज़्यादा समय से यह गीत सीधे तौर पर भारतीय राष्ट्रवाद से जुड़ा हुआ है. ऐसे ‘जनता के गीत’ न तो किसी के मनमुताबिक बनाए जाते हैं और न ही इन्हें लोगों के मन पर थोपा जा सकता है. ये अपने आप ही ऊंचाइयों को छू लेते हैं.
BJP-RSS पर उठाया सवाल
खड़गे ने दावा किया कि 1937 में उत्तर प्रदेश विधानसभा ने ‘वंदे मातरम्’ का पाठ शुरू किया था, जब पुरुषोत्तम दास टंडन अध्यक्ष थे. उसी वर्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने औपचारिक रूप से ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी, जिससे भारत की विविधता में एकता के प्रतीक के रूप में इसकी स्थिति की पुष्टि हुई. उन्होंने कहा कि यह बहुत विडंबनापूर्ण है कि आरएसएस और भाजपा के लोग आज राष्ट्रवाद के स्वयंभू संरक्षक होने का दावा करते हैं. आरएसएस और भाजपा ने कभी भी अपनी शाखाओं या कार्यालयों में ‘वंदे मातरम्’ या राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ नहीं गाया है. इसके बजाय वे ‘नमस्ते सदा वत्सले’ गाना जारी रखते हैं, एक ऐसा गीत जो उनके संगठनों को गौरवान्वित करता है, राष्ट्र को नहीं. 1925 में अपनी स्थापना के बाद से आरएसएस ने अपनी सार्वभौमिक श्रद्धा के बावजूद ‘वंदे मातरम्’ से परहेज किया है.
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