Home Latest बॉम्बे हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसलाः बिना सुनवाई के कैदी को लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता जेल में

बॉम्बे हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसलाः बिना सुनवाई के कैदी को लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता जेल में

by Sanjay Kumar Srivastava
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Bombay High Court

न्यायमूर्ति जाधव ने कहा कि आजकल मुकदमों को समाप्त होने में बहुत समय लग रहा है. पीठ ने कहा कि वह नियमित रूप से ऐसे मामलों से निपटती है, जहां विचाराधीन कैदी लंबे समय से हिरासत में हैं.

Mumbai: बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बिना सुनवाई के कैदी को लंबे समय तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता. यदि ऐसा किया जाता है तो वह दंड के समान है. जमानत देना नियम है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि जमानत का सिद्धांत नियम है और इनकार अपवाद है, क्योंकि बिना सुनवाई के किसी कैदी को लंबे समय तक हिरासत में रखना ‘परीक्षण-पूर्व दंड’ के बराबर है. न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की पीठ ने 9 मई को राज्य की जेलों में भीड़भाड़ का भी संज्ञान लिया और कहा कि अदालतों को संतुलन बनाने की जरूरत है. पीठ ने 2018 में अपने भाई की हत्या के लिए गिरफ्तार विकास पाटिल को जमानत देते हुए ये टिप्पणियां कीं.

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पीठ ने कहा- प्रत्येक बैरक में केवल 50 को रखने की अनुमति, लेकिन हैं 250 कैदी

न्यायमूर्ति जाधव ने कहा कि आजकल मुकदमों को समाप्त होने में बहुत समय लग रहा है और साथ ही कुछ क्षेत्रों में जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं. पीठ ने कहा कि वह नियमित रूप से ऐसे मामलों से निपटती है, जहां विचाराधीन कैदी लंबे समय से हिरासत में हैं और वह जेलों की स्थितियों से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं. न्यायमूर्ति जाधव ने आर्थर रोड जेल के अधीक्षक की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि जेल में स्वीकृत क्षमता से छह गुना से अधिक कैदी भरे हुए हैं. पीठ ने कहा कि प्रत्येक बैरक में केवल 50 कैदियों को रखने की अनुमति है, लेकिन आज की तारीख में उसमें 220 से 250 कैदी हैं. इस तरह की असंगति हमें इस प्रस्ताव का उत्तर देने के लिए प्रेरित करती है. अदालतें दो ध्रुवों के बीच संतुलन कैसे पा सकती हैं ?

लंबे समय से जेल में बंद विचाराधीन कैदियों के संवैधानिक अधिकार होते हैं प्रभावित

अदालत ने कहा कि ये विचाराधीन कैदियों की स्वतंत्रता से संबंधित मामले हैं, जो लंबे समय से जेल में हैं, जिससे उनके त्वरित न्याय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार प्रभावित होते हैं. उन्होंने कहा कि मूल नियम यह है कि जमानत नियम है और इनकार अपवाद है. न्यायमूर्ति जाधव ने दो विचाराधीन कैदियों द्वारा लिखे गए एक लेख “प्रूफ ऑफ गिल्ट” का उल्लेख किया, जिसमें मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे व्यक्तियों की लंबी कैद का सवाल उठाया गया था. उन्होंने कहा कि हालांकि लंबी कैद जमानत के लिए एक पूर्ण प्रस्ताव नहीं हो सकती है, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर त्वरित सुनवाई के अधिकार के साथ विचार करने की आवश्यकता है.

अभियोजन पक्ष अपनी मानसिकता और दृष्टिकोण में लाए बदलाव

अदालत ने कहा कि एक विचाराधीन कैदी को लंबे समय तक हिरासत में रखने से केवल बिना सुनवाई के ‘सरोगेट सजा’के पुरस्कार को वैध बनाने का काम होता है, जो कि पूर्व-परीक्षण दंड के बराबर है. पीठ ने अभियोजन पक्ष की मानसिकता और दृष्टिकोण में बदलाव का भी आह्वान किया और उल्लेख किया कि कैसे अभियोजक इस गलत धारणा के तहत लंबे समय तक कारावास के मामलों में भी जमानत याचिकाओं का जोरदार विरोध करते हैं और कहते हैं कि अपराध गंभीर है,इसलिए जमानत नहीं दी जानी चाहिए. न्यायमूर्ति जाधव ने कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र का व्यापक सिद्धांत कि किसी आरोपी को दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाता है,को हल्के में नहीं लिया जा सकता, चाहे कानून कितना भी कठोर क्यों न हो.

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