आरक्षण नीति की समीक्षा पर पांच जनजातियों की समिति (सीओआरआरपी) ने गुरुवार को पिछड़ी जनजातियों (बीटी) के आरक्षण के मुद्दे पर नागालैंड कैबिनेट के फैसले की कड़ी आलोचना की.
Kohima: आरक्षण नीति की समीक्षा पर पांच जनजातियों की समिति (सीओआरआरपी) ने गुरुवार को पिछड़ी जनजातियों (बीटी) के आरक्षण के मुद्दे पर नागालैंड कैबिनेट के फैसले की कड़ी आलोचना की. समिति ने इसे 12 जून के फैसले की पुनरावृत्ति बताया, जो उनकी प्रमुख मांगों को पूरा करने में विफल रहा. सीओआरआरपी के संयोजक टेसिनलो सेमी और सदस्य सचिव जीके झिमोमी ने निराशा व्यक्त की कि राज्य सरकार ने फिर से उनकी मुख्य चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया है और एक आरक्षण समीक्षा आयोग के गठन के साथ आगे बढ़ गई है, जिसमें केंद्रीय नागालैंड जनजाति परिषद, पूर्वी नागालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन और तेन्यीमी यूनियन नागालैंड जैसे नागरिक समाज संगठन शामिल हैं. सीओआरआरपी की मुख्य मांगें दशकों पुरानी आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए एक स्वतंत्र आयोग के गठन और संदर्भ की शर्तें तय करना हैं.
नौकरियों में भेदभाव का आरोप
समिति ने आरोप लगाया कि सरकार द्वारा घोषित आयोग में निष्पक्षता का अभाव है और यह पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण को दर्शाता है. समिति ने बुधवार को यहां हुई कैबिनेट बैठक के बाद मीडिया ब्रीफिंग के दौरान सरकार के प्रवक्ता और मंत्री केजी केन्ये द्वारा की गई टिप्पणियों पर भी कड़ी आपत्ति जताई. आधिकारिक आंकड़ों का हवाला देते हुए केन्ये ने कहा कि पांच गैर-पिछड़ी जनजातियां वर्तमान में 64 प्रतिशत सरकारी नौकरियों पर काबिज हैं, जबकि 10 पिछड़ी जनजातियों के पास केवल 34 प्रतिशत है. उन्होंने आगे कहा कि इस असंतुलन को दूर करने के लिए सरकार एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के नेतृत्व में एक आरक्षण समीक्षा आयोग का गठन करेगी. मंत्री ने कहा कि आयोग को औपचारिक रूप से नियुक्त होने के छह महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का काम सौंपा गया है, लेकिन सुधारों का कार्यान्वयन जनवरी 2026 में केंद्र द्वारा निर्धारित जाति-आधारित जनगणना के साथ हो सकता है.
आरक्षण नीति की हो समीक्षा
केन्ये के औचित्य को खारिज करते हुए सीओआरआरपी ने आरोप लगाया कि 48 वर्षों की अनिश्चितकालीन आरक्षण नीति को सही ठहराने और सरकारी रोजगार में बेतुके काल्पनिक आंकड़े पेश करने के साथ-साथ आरक्षण समीक्षा आयोग के परिणामों को अगली जनगणना से जोड़ने में सरकारी प्रवक्ता के पक्षपातपूर्ण रवैये ने हमारे आंदोलन का अपमान ही बढ़ाया है. सीओआरआरपी ने घोषणा की है कि वह अगली कार्रवाई तय करने के लिए शनिवार को कोहिमा में पांच शीर्ष जनजातीय निकायों के साथ एक संयुक्त बैठक करेगा. हाल ही में सीओओआरआरपी के बैनर तले पांच शीर्ष जनजातीय निकायों द्वारा राज्य सरकार को एक संयुक्त ज्ञापन सौंपे जाने के बाद नागालैंड की आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग तेज हो गई.
1977 से लागू यह नीति अब प्रसंगिक नहीं
उन्होंने तर्क दिया कि 1977 से लागू यह नीति अब राज्य के विभिन्न समुदायों की वर्तमान सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है. समिति ने कई जिला मुख्यालयों (दीमापुर, कोहिमा, मोकोकचुंग, वोखा, त्सेमिन्यु, जुन्हेबोटो, चुमौकेदिमा, निउलैंड) में विरोध रैलियों के रूप में कम से कम दो चरणों में आंदोलन किया – 29 मई और 9 जुलाई को. प्रारंभ में गैर-तकनीकी और अराजपत्रित पदों पर सात जनजातियों के लिए 10 वर्षों की अवधि के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण आवंटित किया गया था. समय के साथ आरक्षण बढ़कर 37 प्रतिशत हो गया, जिसमें पूर्वी नागालैंड की सात पिछड़ी जनजातियों के लिए 25 प्रतिशत तथा राज्य की चार अन्य पिछड़ी जनजातियों के लिए 12 प्रतिशत शामिल है.
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