पिपलोदी गांव में स्थित सरकारी स्कूल की 35 साल पुरानी इमारत शुक्रवार सुबह गिर गई, जिसमें सात बच्चों की मौत हो गई और 27 घायल हो गए.
Jhalawar: राजस्थान के झालावाड़ जिले में सरकारी स्कूल की इमारत गिरने से 7 बच्चों की मौत के बाद कलेक्टर अजय सिंह ने बताया कि स्कूल के पांच कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है. सरकार ने मृत बच्चों के परिजनों को 10-10 लाख रुपए अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है. इसके अलावा परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी दी जाएगी. शुक्रवार सुबह पिपलोदी गांव में स्थित सरकारी स्कूल की 35 साल पुरानी इमारत गिर गई, जिसमें कम से कम सात बच्चों की मौत हो गई और 27 अन्य घायल हो गए. स्कूल की इमारत में कुल चार कक्षाएं थीं, जिनमें से एक ढह गई. ये इमारत 1994 में ग्राम पंचायत द्वारा बनवाई गई थी. हादसे में जान गंवाने वाले बच्चों का अंतिम संस्कार शनिवार को झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में किया गया. हादसे में जान गंवाने वालों में सबसे छोटा बच्चा सिर्फ छह साल का है.
घायलों में से नौ की हालत गंभीर
पीपलोदी गांव के सरकारी स्कूल में बच्चे सुबह की प्रार्थना के लिए इकट्ठा हो रहे थे, तभी छठी और सातवीं कक्षा की छत ढह गई और कई बच्चे उसमें दब गए. हादसे में जान गंवाने वाले बच्चों की पहचान पायल (12), हरीश (8), प्रियंका (12), कुंदन (12), कार्तिक और भाई-बहन मीना (12) तथा कान्हा (6) के रूप में हुई है. हादसे के तुरंत बाद घायलों को झालावाड़ अस्पताल और मनोहरथाना स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. जिला अस्पताल के एक डॉक्टर ने बताया कि घायलों में से नौ की हालत गंभीर है और उन्हें आईसीयू में भर्ती किया गया है. हादसे के बाद लोगों में गुस्सा फूट पड़ा. स्थानीय निवासियों ने प्रशासन पर आरोप लगाया कि उन्होंने बार-बार दी गई चेतावनियों के बावजूद जर्जर इमारत की अनदेखी की और घटनास्थल पर देर से पहुंचे.
दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग
प्रदर्शनकारियों ने एक प्रमुख सड़क जाम कर दी और टायर जलाकर विरोध जताया. सड़क जाम होने से दोनों तरफ वाहनों की लंबी कतार लग गई. जिला प्रशासन के अधिकारियों ने लोगों को समझाया और मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया, तब जाकर प्रदर्शनकारियों ने जाम खत्म किया. प्रदर्शनकारियों ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई और मृत बच्चों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग की. गुस्साए स्थानीय लोगों ने बताया कि उन्होंने स्कूल भवन की खराब हालत को लेकर तहसीलदार और उपखंड अधिकारी को पहले ही सूचित कर दिया था, लेकिन इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई. लोगों का कहना था कि प्रशासनिक लापरवाही के चलते बच्चों को अपनी जान से हाथ गंवाना पड़ा. शोक में पूरा गांव डूब गया और लोगों के घरों में चूल्हे तक नहीं जले.
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