Home राज्यJharkhand खामोश हो गई आदिवासी राजनीति की मजबूत आवाज! नहीं रहे झारखंड के ‘दिशोम गुरु’

खामोश हो गई आदिवासी राजनीति की मजबूत आवाज! नहीं रहे झारखंड के ‘दिशोम गुरु’

by Jiya Kaushik
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Shibu Soren Death: शिबू सोरेन का निधन केवल झारखंड के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश की आदिवासी राजनीति और सामाजिक न्याय आंदोलन के लिए एक अपूरणीय क्षति है.

Shibu Soren Death: झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और आदिवासी राजनीति के पुरोधा शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया. वह 81 वर्ष के थे और पिछले एक महीने से दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में किडनी संबंधी बीमारी का इलाज करा रहे थे. झारखंड के मुख्यमंत्री और उनके बेटे हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर यह जानकारी साझा करते हुए लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी अब नहीं रहे… आज मैं शून्य हो गया हूं.”

राजनीति में चार दशकों की प्रभावशाली उपस्थिति

शिबू सोरेन ने चार दशकों तक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी. वे आठ बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे. वे झारखंड के मुख्यमंत्री, केंद्र में पूर्व केंद्रीय मंत्री, और झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्थायी अध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके हैं.

आदिवासी चेतना की आवाज थे शिबू

शिबू सोरेन का जन्म वर्तमान झारखंड के रामगढ़ जिले में एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था. 1972 में उन्होंने वामपंथी ट्रेड यूनियन नेता एके रॉय और बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की. 1980 में वे पहली बार दुमका लोकसभा सीट से सांसद बने, जो वर्षों तक उनका गढ़ बना रहा. हालांकि, 2019 में भाजपा के नलिन सोरेन से वे इस सीट पर चुनाव हार गए. इसके बावजूद शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति में एक प्रेरक शक्ति बने रहे.

अंतिम दिनों तक संघर्षरत रहे ‘गुरुजी’

शिबू सोरेन पिछले कई वर्षों से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे. जून 2024 के अंतिम सप्ताह में उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती किया गया था. हालत नाजुक होने के कारण उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था. रविवार रात उनकी तबीयत और बिगड़ गई और सोमवार को उन्होंने अंतिम सांस ली.

शिबू सोरेन का निधन केवल झारखंड के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश की आदिवासी राजनीति और सामाजिक न्याय आंदोलन के लिए एक अपूरणीय क्षति है. ‘दिशोम गुरु’ के नाम से मशहूर इस जननायक ने न केवल राज्य गठन की लड़ाई लड़ी, बल्कि झारखंड की आत्मा को राजनीति में स्वर दिया. उनका जाना एक युग का अंत है, जिसकी गूंज आने वाले दशकों तक झारखंड की राजनीति और समाज में महसूस की जाएगी.

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