Country And Its Flag: एक देश, जिसके राष्ट्रीय ध्वज पर बना है भव्य हिंदू मंदिर, लेकिन वहां रहने वाले हिंदुओं की संख्या जानकर आप हैरान रह जाएंगे.
Country And Its Flag: दुनिया में हर देश का झंडा उसकी पहचान होता है. रंग, डिजाइन और प्रतीकों के जरिए वो अपने इतिहास, संस्कृति और मूल्यों को दर्शाता है. लेकिन क्या आपने कभी किसी ऐसे झंडे के बारे में सुना है जिसमें एक हिंदू मंदिर बना हो? और वो भी ऐसा मंदिर, जो कभी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल हुआ करता था?
कंबोडिया, दक्षिण-पूर्व एशिया का एक छोटा सा देश, इस अनोखे सम्मान का अकेला उदाहरण है. यहां का राष्ट्रीय ध्वज दुनिया में इकलौता है, जिसमें एक मंदिर को जगह दी गई है और वो मंदिर है अंकोरवाट. लेकिन इसी के साथ जुड़ी है एक हैरान करने वाली बात,वहां हिंदू धर्म के अनुयायी अब नाममात्र ही बचे हैं.
अनोखा है इसका झंडा
कंबोडिया का झंडा देखने में जितना आकर्षक है, उसके पीछे की कहानी उतनी ही गहरी है. झंडे की तीन पट्टियों में बीच की लाल पट्टी पर सफेद रंग में बना है एक मंदिर और वो कोई साधारण मंदिर नहीं, बल्कि अंकोरवाट है. ये वही मंदिर है जिसे कभी भगवान विष्णु को समर्पित किया गया था. 12वीं सदी में खमेर साम्राज्य के सूर्यवर्मन द्वितीय ने इसे बनवाया था. झंडे में इसकी मौजूदगी, देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गहराई को दर्शाती है.
भव्यता का प्रतीक था अंकोरवाट
अंकोरवाट न सिर्फ कंबोडिया का गर्व है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक स्थापत्य चमत्कार है. इस मंदिर की नक्काशी, संरचना और आकार इतना विशाल है कि यह आज भी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक परिसर माना जाता है. दीवारों पर उकेरे गए महाभारत और रामायण के दृश्य इसकी हिंदू जड़ों का प्रमाण देते हैं. जब इस मंदिर को झंडे पर स्थान मिला, तब यह पूरे राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर बन गया, लेकिन यह गौरव आज एक विडंबना के साथ जुड़ चुका है.

और हिंदू कहां गए?
यह सबसे बड़ा सवाल ये है की, जिस देश के झंडे पर हिंदू मंदिर बना है, वहां अब हिंदू धर्म के अनुयायियों की संख्या बमुश्किल 1000 से 1500 है. ये सभी या तो प्रवासी भारतीय हैं या ऐसे लोग जो व्यापार, शिक्षा और पेशेवर सेवाओं से जुड़े हैं. स्थानीय आबादी में हिंदू धर्म लगभग समाप्त हो चुका है. यह धार्मिक विस्थापन इतिहास के उस हिस्से को सामने लाता है जो अक्सर नजरों से छूट जाता है.
बौद्ध प्रभाव का विस्तार

समय के साथ, अंकोरवाट मंदिर का धार्मिक स्वरूप बदलने लगा. 14वीं शताब्दी के बाद यहां बौद्ध धर्म का प्रभाव तेज़ी से बढ़ा, और आज यह मंदिर एक हिंदू-बौद्ध मिश्रित स्थल के रूप में जाना जाता है. अब यहां पूजा की पद्धति बदल चुकी है, लेकिन मंदिर की मूल वास्तुकला और प्रतीक आज भी हिंदू संस्कृति की याद दिलाते हैं.
झंडे में मंदिर, लेकिन अधूरी कहानी
बता दें, झंडे में अंकोरवाट की तीन मीनारों को दिखाया गया है, जबकि असल मंदिर में पांच मीनारें हैं. यह डिज़ाइन उद्देश्यपूर्ण था, जिससे झंडा अधिक संतुलित और स्पष्ट दिखे. लेकिन यही झंडा आज उस विरासत की पहचान बन गया है, जिसे वर्तमान में लोग भूलते जा रहे हैं। झंडा बोलता है, लेकिन शायद वो कहानी नहीं कह पाता जो इतिहास में दबी रह गई.

क्या सिर्फ प्रतीक रह गया है मंदिर?
कंबोडिया आने वाले पर्यटक अंकोरवाट देखकर उसकी भव्यता से प्रभावित होते हैं, लेकिन उन्हें शायद ही यह पता हो कि यह मंदिर कभी एक जीवंत हिंदू धार्मिक स्थल था. अब यह मंदिर सिर्फ एक ऐतिहासिक धरोहर बन गया है, एक ऐसा ढांचा, जिसमें धर्म अब गूंजता नहीं, बस दीवारों पर उकेरा गया है.
कंबोडिया का झंडा, जिसमें अंकोरवाट मंदिर चमकता है, आज भी एक राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक तो है, लेकिन जिस धर्म से उस मंदिर की उत्पत्ति हुई, वही धर्म अब वहां शायद ही जीवित है. यह विरोधाभास सिर्फ कंबोडिया की कहानी नहीं है, बल्कि ये एक चेतावनी है, कि अगर विरासत को सिर्फ प्रतीकों में कैद किया जाए और उसके मूल भाव को भूला दिया जाए, तो वो एक दिन बस अतीत बनकर रह जाती है.
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