जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा तो दे दिया लेकिन उनका फैसला पीछे कई सवाल खड़े कर गया. विपक्ष भी लगातार इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेर रहा है.
Jagdeep Dhankhar: राजनीति को कभी समझना आसान होता है तो कभी मुश्किल होता है. भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को लेकर कयास लगाए जा रहें हैं कि आखिरकार उन्होंने अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा क्यों दिया? इस पर कयासबाजी तो खूब लगाई जा रही हैलेकिन कोई डंके की चोट पर दावा नहीं कर सकता है कि फलां वजह से ही उन्होंने इस्तीफा दिया है. वाकई धनखड़ का इस्तीफा एक पहेली बनता जा रहा है क्योंकि विपक्ष तो तमाम सवाल दाग रहें हैं लेकिन धनखड़, सरकार और पार्टी की तरफ चुप्पी साध ली गई है, जबतक इन तीनों में से कोई मुंह नहीं खोलेगा तो ये राज ही बना रहेगा कि क्यों इस्तीफा दिया है हालांकि जगदीप धनखड़ ने इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य बताया है लेकिन ये बात हजम नहीं हो रही है.
इस्तीफे के पीछे की क्या कहानी
मॉनसून सत्र के पहले ही दिन सुबह से लेकर शाम 4 बचे तक सब ठीक चल रहा था, धनखड़ ने उसी जोश खरोश और उसी अंदाज में राज्यसभा की कार्यवाही मे भाग लिया तो अचानक स्वास्थ्य का मुद्दा कैसे आ सकता है? अगर उनका स्वास्थ्य वाकई खराब था तो मॉनसूत्र सत्र शुरू होने से पहले इस्तीफा देना चाहिए था? धनखड़ के अचानक इस्तीफा देने से सब भौचक्के हैं. चाहे विपक्ष हो, सत्ता पक्ष के ज्यादातर लोगों को पता नहीं है. वहीं मीडिया के लिए भी ये एक पहेली बनी हुई है. पहेली इसीलिए बनी हुई है कि जिस धनखड़ को अचानक पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया और फिर बीजेपी सरकार ने धूमधाम से पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से देश का उपराष्ट्पति बना दिया. जाहिर है कि ये आलाकमान समेत चंद नेताओं को ही मालूम होगा कि उपराष्ट्रपति बनाने के पीछे क्या पैमाना था. लेकिन जिस शख्स को इतने धूमधाम से उपराष्ट्पति बनाया गया, उसी शख्स की विदाई ऐसी होगी किसी ने सोचा नहीं होगा. न स्वागत, न संसद में फेयरवेल, न दो शब्द जो अक्सर राज्यसभा में सांसदों के कार्यकाल खत्म होने पर दिया जाता है. सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दो लाईन आई जिसके भाव को समझा जा सकता है कि सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा था।. पीएम ने लिखा “श्री जगदीप धनखड़ जी को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है. मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं.”
खटपट कहां से शुरू हुई?
जगदीप धनखड़ ने ऐसा क्या कि 5 घंटे में ही उनकी उल्टी गिनती शुरू हो गई, जो सरकार से सालों का रिश्ता था एक सेकेंड में टूट गया. वाकई सरकार के लिए चुनौती बन गये थे? क्या वाकई सरकार के लिए मुश्किल पैदा कर रहे थे? मॉनसून सत्र की शुरूआत हुई थी नेता से लेकर उपराष्ट्रपति उत्साह के साथ सदन में आए थे, विपक्ष को सिंदूर, SIR इत्यादि मुद्दे पर घेरना था जबकि सरकार भी कह चुकी थी कि सारे मुद्दों पर सरकार चर्चा करने को तैयार है. कहा जा रहा है कि पहली खटास वहां से आई जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की मांग की और सरकार को ट्रंप और आतंकी नहीं पकड़े गये इस पर घेर रहे थे. इसी बीच खड़गे को नड्डा ने जवाब देना शुरू कर दिया लेकिन धनखड़ ने जेपी नड्डा को बोलने का अवसर नहीं दिया. नाराज होकर जेपी नड्डा ने कहा कि रिकॉर्ड में सिर्फ वही जाएगा जो मैं बोलूंगा. दूसरी बात आ रही है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के महाभियोग के मामले में धनखड़ ने सरकार की सहमति के बिना ही एकतरफा फैसला ले लिया जबकि सरकार पहले लोकसभा में इस पर चर्चा करवाना चाहती थी ताकि भ्रष्ट्राचार को लेकर सरकार कितना संवेदनशील है ये दिखाना चाहती थी. लेकिन धनखड़ ने सरकार की प्लानिंग पर पानी फेर दिया. दरअसल सोमवार को जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की BAC की अध्यक्षता की. इस बैठक में सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू समेत विपक्ष के नेता मौजूद थे, इस बैठक में तय हुआ कि BAC की अगली बैठक शाम 4:30 बजे फिर से होगी लेकिन उस बैठक में जे पी नड्डा और किरेन रिजिजू नहीं आए. इसके बावजूद दोनों नेताओं की गैर मौजूदगी में धनखड़ ने 63 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ महाभियोग का नोटिस मिलने और इसकी प्रक्रिया शुरू करने का एलान कर दिया. तीसरी बात है कि विपक्ष की ओर से राज्यसभा में 50 से ज्यादा विपक्षी सदस्यों ने जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ भी महाभियोग का नोटिस दिया हुआ था. ऐसा कहा जा रहा है कि यादव के खिलाफ भी महाभियोग लाने के मूड में थे. उन्होंने ये भी कहा कि न्यायमूर्ति शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के लिए दिए गए नोटिस की जांच की है और पाया है कि उस पर किसी विपक्ष ने दो बार हस्ताक्षर कर दिये हैं. उन्होंने ये कहा है कि हस्ताक्षर की प्रामणिकता की जांच की जा रही है फिर वो सदन को इसकी सूचना दी जाएगी. लगता है कि यही दोनों बातें सरकार को चुभ गई, कहीं धनखड़ मनमानी तो नहीं कर रहे हैं आगे सरकार के लिए संकट तो पैदा नहीं कर देगा. हालांकि धनखड़ बेबाक बड़बोले थे. कई बार सरकार के लिए किरकिरी पैदा करने की कोशिश की राष्ट्रपति पर सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी की थी और और किसान के मुद्दे पर शिवराज सिंह को कटघरे में खड़ा करना सरकार की नजर में खल रहे थे. महाभियोग का मामला आग में घी का काम किया!
तो फिर इस्तीफा कैसे दिया?
सरकार पहले से नाराज चल रही थी फिर महाभियोग के मामले में कहीं न कहीं जे पी नड्डा और किरेन रिजिजू अपने सीनियर नेता को बताया होगा? अंदर ही अंदर बात पक रही होगी और उबल रही होगी? हो सकता है कि सरकार की तरफ से कड़ा संदेश दिया होगा? चूंकि जगदीप धनकड़ आलाकमान के बारे में जो एक धारणा बनाई थी, वो घंटों में बदलने लगी. हो सकता है कि अगर वो बगावत के मूड में आते तो सरकार के लिए किरकिरी पैदा कर सकती थी और धनखड़ को उनके पद से हटाने के लिए महाभियोग लाना पड़ता. लगता है कि उन्होंने बगावत करने की बजाय हथियार डालने का फैसला किया और रात में राष्ट्रपति को इस्तीफा सौंप दिया. गौर करने की बात है कि उनको मनाने की कोशिश नहीं की गई. चूंकि धनखड़ और आलाकमान के बीच इतनी खाई पैदा हो गई जिसे पाटना आसान नहीं था.

–धर्मेन्द्र कुमार सिंह, इनपुट एडिटर, लाईव टाइम्स
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
