Home Latest News & Updates हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा- भूमिहीन मजदूरों के पुनर्वास का कोई प्रावधान…, लैंड नीति पर लगा दी अंतरिम रोक

हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा- भूमिहीन मजदूरों के पुनर्वास का कोई प्रावधान…, लैंड नीति पर लगा दी अंतरिम रोक

by Sanjay Kumar Srivastava
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वकील ने कहा कि लैंड पूलिंग नीति के तहत न तो कोई सामाजिक प्रभाव आकलन किया गया और न ही पर्यावरण संबंधी कोई आकलन किया गया.

Chandigarh: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने गुरुवार को पंजाब की लैंड पूलिंग नीति के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी. यह निर्देश गुरदीप सिंह गिल द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसमें पंजाब सरकार की लैंड पूलिंग नीति 2025 को चुनौती दी गई थी. सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के वकील गुरजीत सिंह ने कहा कि अदालत ने लैंड पूलिंग नीति पर अंतरिम रोक लगा दी है. उन्होंने बताया कि जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है. वकील ने कहा कि लैंड पूलिंग नीति के तहत न तो कोई सामाजिक प्रभाव आकलन किया गया और न ही पर्यावरण संबंधी कोई आकलन किया गया. लुधियाना निवासी याचिकाकर्ता गिल ने 24 जून की राज्य सरकार की अधिसूचना और लैंड पूलिंग नीति 2025 को रद्द करने के लिए निर्देश देने की मांग की, क्योंकि यह अधिकार क्षेत्र से बाहर और “रंगीन कानून” है, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.

सामाजिक प्रभाव का नहीं किया आकलन

6 अगस्त को अदालत ने पंजाब सरकार से पूछा था कि क्या नीति में भूमिहीन मजदूरों के जीवनयापन के लिए पुनर्वास का कोई प्रावधान है. राज्य को यह भी निर्देश दिया गया था कि वह अदालत को सूचित करे कि क्या लैंड पूलिंग नीति को अधिसूचित करने से पहले सामाजिक प्रभाव आकलन किया गया था. याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि चूंकि भूमि पूलिंग नीति को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार अधिनियम, 2013 के तहत माना गया था, लेकिन ऐसा कोई प्रावधान नहीं था जो राज्य को ऐसी नीति तैयार करने का अधिकार देता क्योंकि पंजाब क्षेत्रीय, नगर नियोजन और विकास अधिनियम 1995 के प्रावधान ही एकमात्र अधिनियम थे, जिसके तहत यह नीति तैयार की जा सकती थी.

नीति के लिए ग्राम सभा से नहीं किया संपर्क

याचिका में कहा गया है कि कानून के प्रावधानों के अनुसार ऐसी कोई सामाजिक प्रभाव आकलन रिपोर्ट न तो तैयार की गई और न ही प्रकाशित की गई. इसके अलावा भूमि पूलिंग नीति 2025 लाने से पहले प्रतिवादियों द्वारा किसी भी ग्राम पंचायत या ग्राम सभा से संपर्क नहीं किया गया या उनसे परामर्श नहीं किया गया. जिससे यह नीति भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार अधिनियम 2013 के तहत अनिवार्य प्रावधानों की स्पष्ट अवहेलना है. याचिका में कहा गया है कि भूमि पूलिंग नीति 2025 बनाने के लिए 2013 में पारित प्रस्ताव के बावजूद ऐसी नीति को चुनौती देने के लिए कोई तंत्र या मंच नहीं है. याचिकाकर्ता के पास अपनी शिकायत के निवारण के लिए कोई उपाय नहीं बचा है. आप सरकार विपक्षी दलों और विभिन्न किसान संगठनों की आलोचना का सामना कर रही है. विपक्षियों ने सरकार की भूमि पूलिंग नीति को किसानों से उनकी उपजाऊ भूमि छीनने की एक लूट योजना करार दिया है.

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