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बीकानेर के कालीन बिजनेस पर संकट, अमेरिकी टैरिफ से भारत की परंपरा और रोज़गार पर खतरा

by Preeti Pal
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US Tariff Effect: अमेरिकी टैरिफ ने बीकानेर के ऊन और कालीन उद्योग को हिला कर रख दिया है. जहां एक ओर रोजगार और परंपरा खतरे में है, वहीं दूसरी ओर यह भी सच है कि नए बाजार इस संकट से निकलने का रास्ता बन सकते हैं.

01 September, 2025

US Tariff Effect: राजस्थान का बीकानेर सदियों से ऊन और कालीन के प्रोडक्शन का गढ़ रहा है. 19वीं सदी से चली आ रही इस परंपरा ने न सिर्फ भारत की इकोनॉमी को सहारा दिया, बल्कि ग्लोबल लेवल पर भी अपनी एक अलग पहचान बनाई है. हालांकि, अब इस बिजनेस पर गहरा संकट मंडरा रहा है. वजह है अमेरिका की तरफ से भारतीय ऊन और कालीन के एक्सपोर्ट पर लगाया गया 50 प्रतिशत का टैरिफ, जिसने बिजनेस की रफ्तार को एकदम से रोक दिया है.

खतरे में 1,200 करोड़ का एक्सपोर्ट

राजस्थान से हर साल करीब 1,200 करोड़ रुपये के धागे और कालीन का एक्सपोर्ट होता है. इसमें सबसे बड़ा बाजार अमेरिका रहा है. हालांकि, नए टैरिफ की वजह से अमेरिकी कस्टमर्स की मांग में भारी कमी आ गई है. अब इसका सीधा असर लोकल बिजनेसमैन्स और कारीगरों पर पड़ रहा है. एक्सपर्ट्स का मानन है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो बड़ी संख्या में भारत के कारीगर बेरोज़गार हो जाएंगे. पीढ़ियों से ऊन और कालीन बनाने का काम कर रहे उनके परिवारों का फ्यूचर अब खतरे में है. इसके अलावा कई लोग इस काम को छोड़कर दूसरे रोजगार की तरफ रुख करने पर मजबूर हो सकते हैं.

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सरकार की कोशिशें

इस संकट से निपटने के लिए केंद्रीय ऊन विकास बोर्ड और वस्त्र मंत्रालय (Central Wool Development Board and Ministry of Textiles) ने पहल की है. इसके लिए नई इंटरनेशनल मार्केट्स की तलाश की जा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि यूरोप, मिडिल ईस्ट और एशियाई देशों में भारतीय ऊन और कालीन की मार्केट बन सकती है.

परंपरा पर असर

बीकानेर का ऊन बिजनेस सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि हमारे देश की एक सांस्कृतिक धरोहर भी है. यहां के कारीगरों की शानदार बुनाई और खूबसूरत डिज़ाइन ने भारतीय हस्तशिल्प को दुनियाभर में बड़ी पहचान दिलाई है. वहीं, अगर अमेरिकी टैरिफ का असर लंबे समय तक रहा, तो ये परंपरा टूट सकती है. ऐसे में सदियों पुराना कौशल धीरे-धीरे खत्म होने का खतरा है.

आगे के कदम!

बिजनेस की दुनिया के दिग्गजों का कहना है कि सरकार को तुरंत राहत पैकेज और एक्सपोर्ट सब्सिडी पर फैसला करना चाहिए. साथ ही डिजिटल और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके भारतीय कालीनों को सीधे कस्टमर्स तक पहुंचाने की स्ट्रेटजी बनाई जानी चाहिए.

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