UK recognises Palestinian state: अमेरिका और इजरायल के भारी विरोध के बाद भी ब्रिटेन ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है. ये फैसला इतिहास की धूल झाड़कर शांति की एक नई किताब लिखने की कोशिश है.
21 September, 2025
UK recognises Palestinian state: दुनिया की राजनीति में रविवार को एक ऐतिहासिक मोड़ आया. दरअसल, ब्रिटेन ने फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने का एलान कर दिया है. प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर ने ये फैसला अमेरिका और इज़रायल के कड़े विरोध के बावजूद लिया. स्टारमर ने कहा कि इस कदम का मकसद फिलिस्तीन और इज़रायल दोनों के लिए शांति की उम्मीद को जिंदा रखना है. ये घोषणा ऐसे समय आई है जब कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश पहले ही इस दिशा में कदम उठा चुके हैं. ब्रिटेन के इस एलान के बाद अब संयुक्त राष्ट्र महासभा में और भी देशों के जुड़ने की संभावना है.
विरोध के बीच बड़ा फैसला
ब्रिटेन का ये फैसला प्रतीकात्मक ज़रूर है, लेकिन ऐतिहासिक मायने रखता है. साल 1917 में ब्रिटेन ने ही बालफोर घोषणा के ज़रिए इज़रायल राज्य की नींव रखने में बड़ी भूमिका निभाई थी. ऐसे में अब फ़िलिस्तीन को मान्यता देना एक तरह से उस अधूरी कहानी को पूरा करने जैसा माना जा रहा है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस फैसले पर खुला विरोध जताते हुए कहा, “मेरी प्रधानमंत्री से इस मुद्दे पर असहमति है.” वहीं इज़रायल ने भी इसे आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला कदम बताया.
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गलती को सुधारने की कोशिश
फ़िलिस्तीन के ब्रिटेन स्थित प्रमुख दूत हुसाम ज़ोमलोट ने एक इंटरव्यू से कहा, “ये मान्यता औपनिवेशिक युग की उस गलती को सुधारने की कोशिश है, जो 1917 में हुई थी. आज ब्रिटिश जनता को गर्व होना चाहिए कि इतिहास सुधर रहा है.” उन्होंने कहा कि ये सिर्फ़ राजनीतिक नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी है. वहीं, ब्रिटेन लंबे समय से कहता आया था कि फिलिस्तीन को मान्यता तभी दी जाएगी जब शांति वार्ता से दो-राष्ट्र समाधान तय हों. लेकिन गाज़ा में लगातार हिंसा, लाखों लोगों का विस्थापन और वेस्ट बैंक में इज़रायली बस्तियों का बढ़ता विस्तार इस समाधान को लगभग असंभव बना रहा है.
इतिहास का अधूरा वादा
उप प्रधानमंत्री डेविड लैमी ने कहा, “हमें दो-राष्ट्र विकल्प को ज़िंदा रखना होगा, ताकि गाज़ा, वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम के बच्चे भी शांति और भविष्य का सपना देख सकें.” साल 1917 की बालफोर घोषणा में ये भी लिखा गया था कि इज़रायल की स्थापना के दौरान फिलिस्तीनियों के नागरिक और धार्मिक अधिकारों को किसी भी हाल में नुकसान नहीं होगा. हालांकि, 100 साल बाद भी ये वादा अधूरा है. ब्रिटेन का ये कदम शायद उसी अन्याय को सुधारने की कोशिश है.
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