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 Parliament attack 2001: 13 दिसंबर का वो ज़ख्म, जो आज भी भारत के दिल में ताज़ा है

by Preeti Pal
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 Parliament attack 2001: 13 दिसंबर का वो ज़ख्म, जो आज भी भारत के दिल में ताज़ा है

Parliament attack 2001: कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जिन्हें भुला पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा होता है. 2001 में संसद पर हुआ आतंकी हमला उन्हीं में से एक है.

13 December, 2025

 Parliament attack 2001: 13 दिसंबर, 2001 का दिन भारत के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है. इसी दिन देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के सबसे बड़े प्रतीक, भारतीय संसद पर प्लानिंग के साथ एक आतंकी हमला हुआ. ये हमला न सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था पर डायरेक्ट हिट था, बल्कि पूरे देश को झकझोर देने वाली घटना भी थी. इस हमले का असर सालों तक भारत–पाकिस्तान के रिश्तों और नेशनल सिक्योरिटी पॉलिसी पर दिया. इतने सालों बाद भी भारत की संसद पर हुए इस हमले के जख्म ताजा से लगते हैं.

13 दिसंबर की सुबह

उस दिन सुबह नई संसद भवन में कामकाज लगभग खत्म हो चुका था. लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही करीब 40 मिनट पहले स्थगित हो गई थी, लेकिन इसके बावजूद संसद परिसर के अंदर 100 से ज्यादा लोग मौजूद थे. इनमें कई सांसद, सीनियर ऑफिसर और उस समय के गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी शामिल थे. इसी बीच गृह मंत्रालय और संसद के फर्जी स्टिकर लगी एक कार संसद परिसर में दाखिल हुई. सुरक्षा जांच को चकमा देते हुए कार सीधे अंदर पहुंच गई. कार में सवार पांच आतंकवादी थे, जो आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े बताए गए. उनके पास AK-47 राइफलें, ग्रेनेड लॉन्चर, पिस्टल और हैंड ग्रेनेड थे. कार उपराष्ट्रपति कृष्णकांत की गाड़ी से टकराई, जिसके बाद आतंकवादी बाहर निकले और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी.

17 लोग घायल

संसद की सुरक्षा में तैनात जवानों ने तुरंत मोर्चा संभाला. इसी दौरान सीआरपीएफ की कांस्टेबल कमलेश कुमारी ने सबसे पहले आतंकियों को देखा और अलार्म बजाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें गोली मार दी गई और वो मौके पर ही शहीद हो गईं. सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में पांचों आतंकवादी मारे गए. इस हमले में 9 लोगों की जान गई, जिनमें 6 दिल्ली पुलिस के जवान, संसद सुरक्षा सेवा के 2 कर्मी और 1 माली शामिल थे. इसके अलावा 17 लोग घायल हुए. अगर ये हमला कुछ देर पहले होता, तो संसद में मौजूद कई बड़े नेताओं की जान खतरे में पड़ सकती थी.

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जैश-ए-मोहम्मद

जांच के बाद दिल्ली पुलिस ने खुलासा किया कि ये हमला जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने किया था और इसके पीछे पाकिस्तानी आतंकी नेटवर्क का हाथ था. भारतीय एजेंसियों ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद पर आरोप लगाए. हालांकि, लश्कर ने इसमें अपना हाथ होने से इनकार कर दिया. इस घटना के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया. दोनों देशों की आर्मी बॉर्डर पर आमने-सामने आ गईं. इसे 2001–2002 का भारत-पाकिस्तान मिलिट्री स्टैंड ऑफ कहा जाता है, जो 1971 की वॉर के बाद सबसे बड़ा मिलिट्री बिल्डअप था.

तिहाड़ में फांसी

संसद हमले के बाद जांच शुरू हुई. इस मामले में मोहम्मद अफजल गुरु, शौकत हुसैन गुरु, एस.ए.आर. गिलानी और नवजोत संधू उर्फ अफसान गुरु को आरोपी बनाया गया. लंबे लीगल प्रोसेस के बाद अफजल गुरु को मौत की सजा सुनाई गई. उसकी फांसी कई साल तक टलती रही. हालांकि, 9 फरवरी, 2013 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में उसे फांसी दी गई. मगर इस केस ने न्याय व्यवस्था, आतंकवाद से निपटने की नीति और ह्यूमन राइट्स जैसे मुद्दों पर भी लंबी बहस छेड़ दी. कुछ आरोपियों को बाद में बरी किया गया, जिससे कई सवाल उठे. इतना ही नहीं इंटरनेशनल लेवल पर भी इस हमले की कड़ी निंदा हुई. कई देशों के नेताओं ने भारत का साथ दिया. भारत सरकार ने पाकिस्तान से मांग की, कि वो अपने यहां एक्टिव आतंकी संगठनों पर सख्त कार्रवाई करे.

फिल्मों में दिखी झलक

कई फिल्मों और वेब सीरीज में संसद हमके की फुटेज और इससे जुड़े ऑपरेशन्स को दिखाया गया है. हाल ही में रिलीज़ हुई रणवरी सिंह की फिल्म धुरंधर भी संसद हमले से ही शुरू होती है. खैर, 13 दिसंबर, 2001 का संसद हमला आज भी देश को याद दिलाता है कि लोकतंत्र की रक्षा कितनी जरूरी है. ये सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं था, बल्कि भारत की संप्रभुता और आत्मसम्मान को दी गई चुनौती थी, जिसका जवाब देश ने एकजुट होकर दिया.

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