US-EU Deal: EU के साथ अमेरिका की डील ने वैश्विक व्यापार संतुलन में नया मोड़ लाया है, लेकिन भारत जैसे देशों के लिए स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है. 1 अगस्त की तारीख करीब है और टैरिफ की छाया और गहरी होती जा रही है.
US-EU Deal: दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक-एक कर अमेरिका के साथ व्यापारिक समझौते करती जा रही हैं. जापान, इंडोनेशिया, वियतनाम और ब्रिटेन के बाद अब यूरोपीय यूनियन (EU) ने भी अमेरिका से हाथ मिला लिया है. ट्रंप प्रशासन की नई ट्रेड पॉलिसी के तहत एक और बड़ा समझौता तय हो गया है, लेकिन सवाल यह है कि भारत समेत अन्य देशों की बारी कब आएगी?
EU और अमेरिका के बीच हुई डील
स्कॉटलैंड में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के बीच हुई बैठक के बाद EU-US ट्रेड डील को अंतिम रूप दिया गया. यह समझौता न केवल इन दोनों आर्थिक ताकतों के संबंधों को स्थिरता देगा, बल्कि वैश्विक व्यापार पर भी असर डालेगा. दुनिया के कुल व्यापार का लगभग एक-तिहाई हिस्सा इन्हीं दोनों के बीच होता है.
15% टैरिफ पर बनी सहमति
समझौते के तहत, अमेरिका यूरोपीय यूनियन के ज़्यादातर उत्पादों पर 15% टैरिफ लगाएगा. इससे पहले ट्रंप ने EU पर 30% तक का शुल्क लगाने की चेतावनी दी थी, जो 1 अगस्त से लागू होने वाला था. जवाब में EU ने कुछ अमेरिकी उत्पादों पर ज़ीरो टैरिफ की सहमति दी है. यह डील दोनों पक्षों के लिए संतुलन साधने वाला कदम माना जा रहा है.
भारत समेत कई देशों पर मंडरा रहा टैरिफ संकट

जहां एक तरफ EU को राहत मिली है, वहीं भारत, कनाडा, मेक्सिको, दक्षिण कोरिया और ताइवान जैसे देशों पर टैरिफ की तलवार अब भी लटक रही है. ट्रंप प्रशासन 1 अगस्त से इन देशों पर 10% से अधिक बेसलाइन टैरिफ लगाने की तैयारी में है. पहले यह डेडलाइन 9 जुलाई थी, लेकिन बातचीत की उम्मीद में इसे बढ़ाया गया.
कुछ देशों पर पहले ही गिरा टैरिफ बम
ब्राजील, श्रीलंका, मालदीव, इराक, अल्जीरिया जैसे देशों पर अमेरिका पहले ही 20% से लेकर 50% तक भारी-भरकम टैरिफ थोप चुका है. ट्रंप की नीति साफ है, जो देश समझौते के लिए तैयार नहीं, उनके लिए रेसिप्रोकल टैरिफ की सजा तय है.
भारत पर टैरिफ का खतरा बरकरार
देश के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में कहा कि भारत और अमेरिका के बीच बातचीत सही दिशा में चल रही है और उन्हें उम्मीद है कि भारत 26% टैरिफ के खतरे से बच जाएगा. हालांकि, अब तक कोई ठोस समझौता नहीं हुआ है और 1 अगस्त की डेडलाइन करीब है. लोकल मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस तारीख से पहले किसी अंतरिम समझौते की संभावना भी क्षीण होती जा रही है.
अब देखना यह होगा कि भारत अपनी कूटनीति से अमेरिका को मना पाता है या फिर उसे भी रेसिप्रोकल टैरिफ के बोझ का सामना करना पड़ेगा.
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