Business Update: IndusInd Bank के लिए यह एक चेतावनी है कि कमजोर इंटरनल कंट्रोल और वित्तीय अनुशासन को अनदेखा करना कितना भारी पड़ सकता है.अब बैंक पर निवेशकों का विश्वास दोबारा जीतने और पारदर्शिता की मिसाल पेश करने का दबाव है.
Business Update: 18 साल में पहली बार IndusInd Bank को तिमाही नुकशान झेलना पड़ा है. वित्त वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही में बैंक को 2,236 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, जबकि पिछले साल इसी अवधि में उसे 2,347 करोड़ रुपये का फायदा हुआ था. इंटरनल ऑडिट में सामने आए फर्जीवाड़ों ने बैंक की साख को झकझोर दिया है, जिसके चलते टॉप आर्डर ने इस्तीफा दे दिया और बैंक पर पारदर्शिता और निवेशकों का विश्वास बहाल करने का दबाव बढ़ गया है.
ये गड़बड़ियां बनी तिमाही घाटे की वजह
IndusInd Bank को वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में 2,236 करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ है, और इसके पीछे बैंक के भीतर हुए दो बड़े फर्जीवाड़ों की अहम भूमिका रही है. पहला मामले की बात करें तो ये बैंक के डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में गलत लेखांकन से जुड़ा है, जिसके कारण अकेले इस क्षेत्र में ही बैंक को लगभग 1,966 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा. यह गड़बड़ी मार्च में सामने आई जब आंतरिक ऑडिट में यह पता चला कि बैंक ने कुछ डेरिवेटिव ट्रेडों को ठीक से दर्ज नहीं किया था. दूसरा बड़ा मामला माइक्रोफाइनेंस पोर्टफोलियो से जुड़ा है, जहां लगभग 684 करोड़ रुपये की राशि को तीन तिमाहियों तक गलत तरीके से ब्याज आय के रूप में दर्शाया गया था. बैंक ने इस पूरी राशि को जनवरी 2025 में वापस कर दिया, लेकिन इससे निवेशकों और नियामकों के बीच बैंक की साख पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है.
CEO और डिप्टी CEO का इस्तीफा

अक्षर देखने को मिलता है की बैंकिंग क्षेत्र में किसी भी फाइनेंसियल गड़बड़ी का सबसे सीधा असर लीडरशिप पर पड़ता है, और कुछ ऐसा ही IndusInd Bank के मामले में भी देखने को मिला. जब खामियां और फर्जीवाड़े सामने आए, तो बैंक के भीतर अलग ही झोल चलने लगा. इसी के चलते बैंक के CEO सुमंत कठपालिया और डिप्टी CEO अरुण खुराना ने 29 अप्रैल को अपने पदों से इस्तीफा दे दिया. इन इस्तीफों ने यह साफ संकेत दिया कि गवर्नेंस और आंतरिक नियंत्रण की विफलता को बैंक गंभीरता से ले रहा है. यह कदम बैंक की ओर से निवेशकों और बाजार को यह भरोसा देने के लिए भी जरूरी था कि वह पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है. हालांकि, इन इस्तीफों से यह भी स्पष्ट होता है कि बैंक के शीर्ष स्तर पर निगरानी में चूकें हुई हैं, जिनके नतीजे अब सार्वजनिक रूप में सामने आ रहे हैं.
नियामकीय सख्ती और निवेशकों का दबाव
IndusInd Bank के इस घोटाले ने न केवल बैंक की छवि को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि नियामकों और निवेशकों की निगाहों में बैंक को सवालों के घेरे में ला दिया है. बैंक ने PricewaterhouseCoopers (PwC) जैसी बड़े बाहरी ऑडिट एजेंसी को नियुक्त कर पूरे मामले की स्वतंत्र जांच कराई, जिसने अपनी रिपोर्ट में 30 जून 2024 तक 1,979 करोड़ रुपये के नकारात्मक प्रभाव का अनुमान जताया है. साथ ही, डेरिवेटिव गड़बड़ी के कारण दिसंबर 2024 तक बैंक की नेटवर्थ पर 2.35% तक का असर पड़ने की संभावना है. इन आंकड़ों से साफ है कि आने वाले महीनों में बैंक को सिर्फ अपनी वित्तीय सेहत सुधारने की नहीं, बल्कि बाजार में निवेशकों का भरोसा दोबारा जीतने की भी बड़ी चुनौती का सामना करना होगा. बैंक को अब अपनी गलतियों से सीखते हुए एक नए सिरे से संचालन और नियंत्रण की व्यवस्था को मजबूत करना होगा.
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