GIM Research: GIM का यह शोध साफ कर देता है कि भारत में महिला उद्यमशीलता के सामने सबसे बड़ी दीवार कर्ज की असमान पहुंच है.
GIM Research: भारत में महिला उद्यमियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब भी औपचारिक कर्ज़ (formal loans) तक पहुंच की कमी है. गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (GIM) की ताज़ा रिसर्च ने साफ़ किया है कि महिला उद्यमियों को पुरुषों की तुलना में कर्ज़ लेने में नुकसान उठाना पड़ता है. यह शोध प्रतिष्ठित जर्नल
एप्लाइड इकोनॉमिक्स (Applied Economics) में प्रकाशित हुआ है और इसने सरकार और वित्तीय संस्थाओं की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं.
शोध की बड़ी तस्वीर
- रिसर्च टीम ने NSSO की 2022-23 Annual Survey of Unincorporated Sector Enterprises (ASUSE) से जुड़े 4 लाख से अधिक असंगठित क्षेत्र के उद्यमों का डेटा खंगाला.
- नतीजों में साफ दिखा कि महिलाओं को बैंकों और सरकारी संस्थाओं से कर्ज़ पाने में असमानता झेलनी पड़ती है.
- यह जेंडर क्रेडिट गैप भारत की उद्यमशीलता और रोजगार सृजन पर सीधा असर डालता है.
डिजिटल तकनीक से दिखी उम्मीद
शोधकर्ताओं ने पाया कि जब महिलाएं इंटरनेट बैंकिंग, डिजिटल फाइनेंस सर्विसेज और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती हैं, तो कर्ज़ तक उनकी पहुंच बेहतर होती है.
GIM के प्रोफेसर अजय कदम ने कहा,’अगर हमें निचले तबके की महिलाओं तक उद्यमशीलता का फायदा पहुँचाना है तो जितना निवेश हम नई फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी पर करते हैं, उतना ही समय और धन हमें वित्तीय साक्षरता पर भी करना होगा.’
महिला उद्यमियों की बढ़ती चुनौती
GIM की असिस्टेंट प्रोफेसर स्वरना परमे स्वरणन ने कहा,’महिला उद्यमियों को औपचारिक कर्ज़ पाने में लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है. लेकिन डिजिटल बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं का प्रयोग इस गैप को कम करता है. अगर हम महिलाओं में जागरूकता और डिजिटल फाइनेंस की पहुंच बढ़ा दें तो उनकी वित्तीय मुश्किलें काफ़ी हद तक घट जाएंगी.’
उन्होंने जोर दिया कि डिजिटल सर्विसेज का इस्तेमाल न सिर्फ जानकारी की असमानता (information asymmetry) को कम करता है, बल्कि महिलाओं को बैंकों के चक्कर भी कम लगाने पड़ते हैं.
नीतिगत सुधार की सिफारिशें
- बैंकिंग सुपरविजन नीतियों की समीक्षा हो, ताकि जेंडर गैप कम करने पर विशेष ध्यान दिया जाए.
- महिलाओं के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी अपनाने को बढ़ावा देने वाली सरकारी स्कीमें लाई जाएं.
- डिजिटल फाइनेंशियल साक्षरता पर ज़ोर देकर नीचे से ऊपर तक बदलाव लाया जाए.
अगर सरकार और बैंकिंग संस्थान डिजिटल तकनीक को हथियार बनाकर इस जेंडर गैप को कम करने पर ध्यान दें, तो महिला उद्यमशीलता सिर्फ एक ‘नारा’ नहीं बल्कि आर्थिक विकास की असली ताकत बन सकती है.
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