Home मनोरंजन भारत की पहली LGBTQ फिल्म ‘बदनाम बस्ती’ फिर लौटी पर्दे पर, मेलबर्न फिल्म फेस्टिवल में होगी स्पेशल स्क्रीनिंग

भारत की पहली LGBTQ फिल्म ‘बदनाम बस्ती’ फिर लौटी पर्दे पर, मेलबर्न फिल्म फेस्टिवल में होगी स्पेशल स्क्रीनिंग

by Jiya Kaushik
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Badnam Basti Re Release: ‘बदनाम बस्ती’ का फिर से मिलना और दुनिया के सामने आना भारतीय सिनेमा के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण है. मेलबर्न में होने वाली इसकी स्क्रीनिंग उस आवाज़ को और बुलंद करेगी, जो दशकों पहले दबा दी गई थी.

Badnam Basti Re Release: भारत की पहली LGBTQ विषय पर आधारित फिल्म ‘बदनाम बस्ती’ को एक बार फिर बड़े पर्दे पर देखने का मौका मिलेगा. यह ऐतिहासिक फिल्म अब इंडियन फिल्म फेस्टिवल ऑफ मेलबर्न (IFFM) के विशेष Pride Celebratory Night में 22 अगस्त 2025 को प्रदर्शित की जाएगी. साल 1971 में रिलीज हुई यह फिल्म अपने समय से काफी आगे थी और अब इसे एक संवेदनशील और क्रांतिकारी सिनेमाई दस्तावेज के रूप में फिर से प्रस्तुत किया जा रहा है.

फिर लौटी ‘बदनाम बस्ती’ की कहानी

निर्देशक प्रेम कपूर द्वारा निर्देशित ‘बदनाम बस्ती’ में नितिन सेठी, अमर कक्कड़ और नंदिता ठाकुर ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई थीं. यह कहानी एक डकैत ड्राइवर सर्णाम की है जो बांसुरी नाम की लड़की को एक हमले से बचाता है. बाद में वह मंदिर में काम करने वाले शिवराज को काम पर रखता है और तीनों के बीच एक जटिल लेकिन मानवीय रिश्ता पनपता है.

कई दशकों तक इस फिल्म को खोया हुआ माना जाता रहा, जब तक कि 2019 में जर्मनी के बर्लिन स्थित Arsenal Institute for Film and Video Art के आर्काइव्स में इसकी 35mm प्रिंट अचानक नहीं मिल गई. अमेरिकी क्यूरेटर सिमरन भल्ला और माइकल मेट्जगर, एक अन्य निर्देशक की फिल्म ढूंढ़ रहे थे और उन्हें यह अमूल्य धरोहर मिल गई.

क्वियर सिनेमा को समर्पित एक ऐतिहासिक शाम

IFFM का यह Pride Night सिर्फ LGBTQIA+ समुदाय की पहचान का उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारतीय सिनेमा में लंबे समय से उपेक्षित रही कहानियों को सम्मान देने का प्रयास भी है. इस खास रात में ‘बदनाम बस्ती’ के बाद फिल्मकार ओनिर की नई फिल्म ‘We Are Faheem and Karun’ का भी ऑस्ट्रेलियाई प्रीमियर किया जाएगा, जो एक भावनात्मक क्वियर प्रेम कथा है.

IFFM 2025 की थीम

मेलबर्न में 14 से 24 अगस्त के बीच होने वाले IFFM के 16वें संस्करण में कुल लगभग 75 फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी. इस बार महोत्सव का फोकस लैंगिक पहचान, जाति, यौनिकता, दिव्यांगता और महिलाओं की अभिव्यक्ति जैसे विषयों पर है. IFFM की डायरेक्टर मीतू भौमिक लांगे ने कहा, “सिनेमा में वो शक्ति है जो समाज को जोड़ सकता है और जरूरी संवाद को जन्म दे सकता है. ‘बदनाम बस्ती’ जैसी फिल्में अतीत को सम्मान देती हैं और समावेशी कहानियों वाले भविष्य का स्वागत करती हैं.”

‘बदनाम बस्ती’ का फिर से मिलना और दुनिया के सामने आना भारतीय सिनेमा के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण है. यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि कई दबे हुए भावों और पहचान की आवाज है जिसे अब दुनिया भर में सुना जा रहा है. मेलबर्न में होने वाली इसकी स्क्रीनिंग उस आवाज़ को और बुलंद करेगी, जो दशकों पहले दबा दी गई थी.

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