Supreme Court Decision: अदालत ने नागपुर निवासी वसंत संपत दुपारे की याचिका पर यह निर्णय दिया. दुपारे को अप्रैल 2008 में चार वर्षीय बच्ची के साथ रेप और हत्या का दोषी ठहराया गया था.
Supreme Court Decision: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत मौत की सजा को चुनौती दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मृत्युदंड से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 32 अदालत को मौत की सजा को फिर से सुनाई करने का अधिकार देता है. अदालत ने नागपुर निवासी वसंत संपत दुपारे की याचिका पर यह निर्णय दिया. दुपारे को अप्रैल 2008 में चार वर्षीय बच्ची के साथ रेप और हत्या का दोषी ठहराया गया था. उसने बच्ची को चॉकलेट का लालच देकर अपने साथ ले गया और पहचान मिटाने के लिए उसके सिर को पत्थरों से कुचल दिया था. न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की तीन सदस्यीय पीठ ने दोषी की अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि मामले में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन हुआ है. पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 32 अदालत को यह अधिकार देता है कि वह मृत्युदंड से संबंधित मामलों में यह सुनिश्चित करे कि सभी संवैधानिक गारंटी और दिशानिर्देशों का पालन हुआ है.
मौलिक अधिकारों से वंचित न हो कोई
अदालत ने विशेष रूप से “मनोज बनाम मध्य प्रदेश” मामले का हवाला दिया, जिसमें मृत्युदंड से जुड़े मामलों में कठोर दिशानिर्देश तय किए गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन सुरक्षा उपायों का सख्ती से अनुपालन होना आवश्यक है ताकि किसी भी दोषी को समान व्यवहार, व्यक्तिगत सजा और निष्पक्ष प्रक्रिया जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित न किया जाए. ये अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत हर व्यक्ति को प्राप्त हैं. इस निर्णय से यह स्पष्ट हुआ कि सर्वोच्च न्यायालय मृत्युदंड मामलों में केवल अपराध की गंभीरता पर ही नहीं, बल्कि दोषी को उपलब्ध कराए गए अधिकारों और प्रक्रियाओं की निष्पक्षता पर भी विशेष जोर देगा. अदालत ने कहा कि यह सुधारात्मक शक्ति न्याय सुनिश्चित करने और संविधान के मूल्यों की रक्षा के लिए आवश्यक है.
दुपारे को 2014 में मिली थी सजा
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 32 के असाधारण दायरे को समाप्त हो चुके मामलों को फिर से खोलने के लिए एक नियमित मार्ग बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती. पीठ ने कहा कि केवल उन मामलों को फिर से खोलना सही होगा जहां नए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का स्पष्ट, विशिष्ट उल्लंघन है, क्योंकि ये उल्लंघन इतने गंभीर हैं कि अगर इन्हें ठीक नहीं किया गया, तो वे आरोपी व्यक्ति के सम्मान और निष्पक्ष प्रक्रिया जैसे बुनियादी अधिकारों को कमजोर कर देंगे. शीर्ष अदालत ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा लेकिन वर्तमान में सजा पर लिए गए 2017 के दृष्टिकोण को अलग रखा. पीठ ने मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए उचित सूचीबद्ध करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के समक्ष रखा. दुपारे की सजा की पुष्टि शीर्ष अदालत ने 2014 में की थी. 26 नवंबर, 2014 के फैसले के खिलाफ उनकी समीक्षा याचिका को शीर्ष अदालत ने 3 मई, 2017 को खारिज कर दिया था.
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