Court Decision: आरोपी पर 9 जनवरी 2021 को दो अलग-अलग मौकों पर बच्ची को गले लगाने और चूमने का आरोप था. कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया.
Court Decision: महाराष्ट्र में ठाणे की एक विशेष अदालत ने 2021 में तीन साल की बच्ची के गाल पर चुंबन लेकर उसके साथ छेड़छाड़ करने के मामले में एक व्यक्ति को बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि उसके इस कदम को आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता क्योंकि बच्चों से प्यार करने वाला कोई भी व्यक्ति स्वाभाविक प्रवृत्ति से ऐसा कर सकता है. अदालत ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए कहा कि उसकी ओर से स्पष्ट आपराधिक इरादे का अभाव था और अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ आरोपों को साबित करने में विफल रहा. 22 अगस्त को पारित एक आदेश में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही विशेष न्यायाधीश रूबी यू मालवंकर ने 54 वर्षीय ओमप्रकाश रामबचन गिरि को बरी कर दिया. उस पर 9 जनवरी 2021 को दो अलग-अलग मौकों पर बच्ची को गले लगाने और चूमने का आरोप था.
नहीं बनता अनुचित स्पर्श का मामला
पुलिस ने आरोपी के खिलाफ POCSO अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 (महिला की शील भंग करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत मामला दर्ज किया था. अदालत ने कहा कि जिस कथित कृत्य के लिए अभियुक्त के विरुद्ध अभियोजन चलाया गया है, उसे ऐसे कृत्य की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता जिसे सभी मामलों में अनुचित स्पर्श या बुरा स्पर्श कहा जा सके. संबंधित समय में पीड़िता की उम्र को ध्यान में रखते हुए कोई भी व्यक्ति जो स्वाभाविक रूप से बच्चों से प्रेम करता है, उसे गोद में उठा सकता है. उसके गाल पर प्यार से चुंबन दे सकता है, जो समाज में आमतौर पर होता है. अदालत ने कहा कि हमारे जैसे देश में इस तरह का व्यवहार जब तक कि वह बच्चे को चोट न पहुंचा रहा हो या जब तक कि यह किसी अजनबी द्वारा बुरी नीयत से न किया गया हो – वास्तव में आपत्तिजनक या अपमानजनक नहीं माना जाता है. इसलिए इस मामले में भी, चूंकि आरोपी बिल्कुल अजनबी नहीं था क्योंकि वह उसी इलाके का निवासी था, इसलिए इसे पूरी तरह से आपराधिक कृत्य की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. अदालत ने कहा कि कथित घटनाओं के दौरान बच्ची दर्द से नहीं रोई.
मां की मौखिक गवाही साक्ष्य नहीं
न्यायाधीश ने निष्कर्ष निकाला कि ऐसी सभी परिस्थितियों में पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचाने का तत्व लगभग नगण्य है और स्नेहपूर्ण भाव-भंगिमा को उचित संदेह से परे आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता. इन निष्कर्षों के आधार पर अदालत ने आरोपी को संदेह का लाभ दिया, जिसके परिणामस्वरूप उसे बरी कर दिया गया. आईपीसी की धारा 354 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 (यौन कृत्य) के तहत आरोप सिद्ध नहीं हुए और गिरी को सभी अपराधों से बरी कर दिया गया. अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष पीड़िता को पॉक्सो अधिनियम के तहत बच्ची साबित करने के लिए जन्म प्रमाण पत्र या कोई भी दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा. हालांकि मां ने गवाही दी कि उसकी बेटी तीन साल की थी, लेकिन उसकी मौखिक गवाही को साक्ष्यों का समर्थन नहीं मिला.
मां ने दूसरे की बात पर किया भरोसा
अदालत ने कहा कि मां ने कथित घटना स्वयं नहीं देखी थी, बल्कि एक 12 वर्षीय लड़की और एक अन्य बच्चे से मिली जानकारी पर भरोसा किया. अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी उस महत्वपूर्ण गवाह का बयान दर्ज करने में विफल रहा, जिसने मां को दूसरी कथित घटना के बारे में सूचित किया था. बच्ची के गाल पर खरोंच के निशान के आरोप के बावजूद, जांच अधिकारी ने पीड़िता का मेडिकल परीक्षण नहीं कराया और अभियोजन पक्ष के गवाह की गवाही को मामले में मात्र सुधार बताया. पीड़िता की अपनी गवाही, जो उसने सात साल की उम्र में दर्ज की थी, को अविश्वसनीय माना गया. पीड़िता ने जिरह में स्वीकार किया कि उसके पिता ने उसे अदालत में क्या कहना है, इस बारे में निर्देश दिया था, जिससे अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि उसे निर्देश दिए जाने की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता.
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