Home Lifestyle सोने की डोरियों के पीछे छिपा है दर्द, क्या आपने देखी लखनऊ के ज़रदोज़ी कारीगरों की अधूरी चमक?

सोने की डोरियों के पीछे छिपा है दर्द, क्या आपने देखी लखनऊ के ज़रदोज़ी कारीगरों की अधूरी चमक?

by Preeti Pal
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सोने की डोरियों के पीछे छिपा है दर्द, क्या आपने देखी लखनऊ के ज़रदोज़ी कारीगरों की अधूरी चमक?

Zardozi workers: आपने भी कभी ना कभी जरदोज़ी कढ़ाई से सजा कोई कपड़ा जरूर पहना होगा. हालांकि, इस खूबसूरत काम को करने वाले कारीगर खुद बड़ी मुश्किल से गुज़ारा कर पाते हैं.

06 November, 2025

Zardozi workers: लखनऊ के हुसैनाबाद की तंग गलियों में हर दिन सोने जैसी डोरियां चमकती हैं. पर उन डोरियों के पीछे झुके हुए हैं कुछ थके हुए हाथ, जो दुनिया के सबसे खूबसूरत लिबास बनाते हैं. हालांकि, वो खुद मुश्किल से अपने और अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं. दरअसल, हम बात कर रहे हैं, जरदोज़ी कारीगरों की. जहां वो इस रॉयल कला को शेप देते हैं, उन कमरों में न हवा का रास्ता है, न रौशनी. बस एक पीला बल्ब जलता है, जहां एक साथ 5-6 कारीगर 15–16 घंटे कमर झुकाकर ज़रदोज़ी की बारीक कढ़ाई करने में जुटे रहते हैं.

रॉयल आर्ट से स्ट्रगल आर्ट

एक ज़माने में लखनऊ की ज़रदोज़ी कढ़ाई नवाबों के दरबारों की शान हुआ करती थी. तब, राजा-रानियों के कपड़ों पर, शाही पर्दों पर, दीवारों पर, सोने-चांदी के असली तारों से कढ़ाई होती थी. हालांकि, आज वही कारीगर नकली गोल्डन तारों से दहेज के लहंगे और डिज़ाइनर गाउन सजा रहे हैं. हैरानी की बात ये है कि दिन के अंत में उनकी जेब में बस 100 या 120 रुपये डाले जाते हैं.

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लक्ज़री के पीछे ग़रीबी

आपने कभी सोचा है कि जो लहंगा 1.5 लाख रुपये में बिकता है, उसे बनाने वाले को शायद 150 रुपये भी नहीं मिलते? फैशन ब्रांड, डिजाइनर और बिचौलिए, सब अपना हिस्सा निकाल लेते हैं. मगर कारीगर, जो इस कला को पीढ़ियों से जिंदा रखे हुए हैं, वो गरीबी में ही डूबे रहते हैं. कपड़े पर जरदोज़ी का काम जितना खूबसूरत दिखता है, उतना ही थकाने वाला होता है. दिनभर झुककर काम करने से कारीगरों की पीठ झुक जाती है. इतना ही नहीं, उनकी आंखों की रौशनी चली जाती है.

आख़िरी सांसें गिन रही है आर्ट

इन सबके बावजूद जरदोज़ी कारीगरों की उंगलियों में अब भी एक उम्मीद झिलमिलाती है. वो हर दिन नए डिज़ाइन में जान डालते हैं, जैसे मानो हर टांके के साथ अपनी ज़िंदगी भी सिल रहे हों. लेकिन अगर अब भी हमने इन्हें नहीं पहचाना, तो शायद ज़रदोज़ी बस म्यूज़ियमों और फैशन शो की बात बनकर रह जाएगी. ऐसे में अगली बार जब आप किसी दुल्हन के लहंगे या डिजाइनर पर्स पर गोल्डन कढ़ाई देखें, तो ज़रा सोचिए कि ये चमक आखिर किसकी है? वो चकम किसी ऐसे कलाकार की है, जिसके हाथों ने सोना बुना, पर खुद कभी चमक नहीं देखी.

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