Justice Yashwant Verma : न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर आग लगने के बाद कैश बरामदगी मामले में विवाद बढ़ता जा रहा है. अब सुप्रीम कोर्ट भी FIR दर्ज करने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है.
Justice Yashwant Verma : नकदी बरामदगी मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने वकील और याचिकाकर्ता मैथ्यूज नेदुम्परा की दलीलों को ध्यान से समझा है. इसके बाद बेंच ने कहा कि अगर सभी खामियों को दूर किया जाता है तो इसपर मंगलवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सकता है. बता दें कि 14 मार्च, 2025 को दिल्ली हाई कोर्ट के जज के आवास के एक स्टोर रूम में आग लग गई थी जिसके बाद वहां से भारी मात्रा में कैश की बरामदगी दर्ज की गई थी.
याचिका में दोष को करेंगे दूर
याचिकाकर्ता मैथ्यूज नेदुम्परा ने कहा कि यदि याचिका में किसी भी प्रकार का दोष है तो वह उसे दूर करेंगे. साथ ही उन्होंने पीठ से आग्रह किया कि इसको बुधवार को सूचीबद्ध किया जाए क्योंकि वह मंगलवार को उपलब्ध नहीं हैं. वहीं, पीठ ने इसे बुधवार को सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई है बशर्ते कि दोष दूर हो जाएं. बता दें कि आंतरिक जांच पैनल द्वारा न्यायाधीश को दोषी ठहराए जाने के बाद तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहा था. न्यायमूर्ति वर्मा द्वारा इस्तीफा देने से इन्कार करने के बाद खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) को पत्र भी लिखा था.
आपराधिक कार्रवाई में देरी उचित नहीं
वहीं, याचिकाकर्ता समेत तीन अन्य लोगों की तरफ से दायर याचिका में आपराधिक कार्यवाही तत्काल शुरू करने की मांग की गई थी. इसके अलावा आतंरिक समिति ने न्यायमूर्ति के खिलाफ आरोपों को प्रथम दृष्टि में सही पाया है. याचिका में इस बात पर जोर दिया गया कि आंतरिक जांच से शुरू न्यायिक अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है. लेकिन यह लागू कानून के तहत आपराधिक जांच का ऑप्शन नहीं है. बता दें कि मार्च के महीने में ही याचिकाकरताओं ने आंतरिक जांच को चुनौती देते हुए और औपचारिक पुलिस जांच की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया था. हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने आंतरिक कार्यवाही की लंबित प्रकृति का हवाला देते हुए याचिका को समय से पहले खारिज कर दिया था. अब जांच पूरी होने जाने के बाद याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि आपराधिक कार्रवाई में देरी अब उचित नहीं है.
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