Vice President Election: चुनाव आयोग (EC) की वेबसाइट के अनुसार, EVM की कल्पना पहली बार 1977 में निकाय चुनाव में की गई थी.
Vice President Election: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM), जो अब तक पांच लोकसभा और 130 से अधिक विधानसभा चुनावों में सफलतापूर्वक इस्तेमाल हो चुकी है, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों के चुनावों में उपयोग नहीं की जा सकती. इसका कारण यह है कि EVM को प्रत्यक्ष चुनावों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जहां सबसे अधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार विजेता होता है. वहीं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत एकल संक्रमणीय मत (Single Transferable Vote) से होते हैं. इसमें प्रत्येक मतदाता उम्मीदवारों को वरीयता क्रम में अंकित करता है, न कि केवल एक को वोट देता है. इस जटिल प्रणाली के लिए बैलट पेपर का उपयोग आवश्यक होता है, क्योंकि EVM में वरीयता क्रम दर्ज करने की सुविधा नहीं है. इस तकनीकी कारण से EVM का उपयोग केवल प्रत्यक्ष चुनावों तक सीमित है.
9 सितंबर को उपराष्ट्रपति का चुनाव
मालूम हो कि 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति का चुनाव है. उम्मीदवारों के लिए ये प्राथमिकताएं मतदाता द्वारा मतपत्र के कॉलम 2 में दिए गए स्थान में उम्मीदवारों के नामों के सामने वरीयता क्रम में 1, 2, 3, 4, 5 इत्यादि अंक अंकित करके अंकित की जानी है. NDA उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन और विपक्ष के उम्मीदवार पी सुदर्शन रेड्डी 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मैदान में हैं. मालूम हो कि 21 जुलाई को जगदीप धनखड़ के अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के कारण यह पद खाली चल रहा है. राज्यसभा चुनावों की तरह, उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में मतदान और मतगणना एक ही दिन होती है. चुनाव अधिकारियों ने बताया कि EVM को मतदान की इस प्रणाली को पंजीकृत करने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है.चुनाव अधिकारी ने बताया कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत मशीन को वरीयता के आधार पर वोटों की गणना करनी होगी, जो मौजूदा EVM में संभव नहीं है.
पहली बार 1982 में किया गया था EVM का उपयोग
चुनाव आयोग (EC) की वेबसाइट के अनुसार, EVM की कल्पना पहली बार 1977 में निकाय चुनाव में की गई थी. इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) हैदराबाद को इसे डिजाइन और विकसित करने का काम सौंपा गया था. 1979 में एक प्रोटोटाइप विकसित किया गया था, जिसे 6 अगस्त 1980 को राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के समक्ष चुनाव आयोग द्वारा प्रदर्शित किया गया था. EVM के निर्माण के लिए एक अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बेंगलुरु को ईसीआईएल (ECIL) के साथ सह-चुना गया था. मशीनों का पहली बार मई 1982 में केरल विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल किया गया था. हालांकि, इसके उपयोग को निर्धारित करने वाले किसी विशिष्ट कानून की अनुपस्थिति के कारण सुप्रीम कोर्ट ने उस चुनाव को रद्द कर दिया था. इसके बाद 1989 में संसद ने चुनावों में EVM के उपयोग का प्रावधान करने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन किया. EVM की शुरुआत पर आम सहमति केवल 1998 में ही बन सकी. इसके बाद उसका उपयोग मध्य प्रदेश, राजस्थान के विधानसभा चुनावों में किया गया. तब से, चुनाव आयोग ने प्रत्येक राज्य चुनाव में EVM का उपयोग किया है.
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